कालपी का विश्व प्रसिद्ध हाथ कागज उद्योग

कालपी का विश्व प्रसिद्ध हाथ कागज उद्योग

@अनिल शर्मा

विश्व के तीन अविष्कारों को महानतम अविष्कार माना जाता है। यथा अग्नि पहिया, मुद्रा। पर कागज का अविष्कार कब और कहां हुआ। उस पर अभी भी और गहराई से बहस होती चली आ रही है। लेकिन हाथ कागज चिर प्राचीन कालीन भारतीय संस्कृति का हिस्सा रहा है।

कालपी उन्हीं प्रमुख स्थलों में एक है। जहां पर हाथ कागज प्राचीन काल में प्रारम्भ हुआ और विकास के नए कीर्तिमान बनाते हुए विश्व में प्रसिद्ध हुआ। लेकिन कालपी का हाथ कागज कुटीर उद्योग आज सरकार के संरक्षण के अभाव में बंदी की कगार पर पहुंच रहा है।
कालिंजर के चंदेलकालीन राज परमादि देव परमार्थ (1165-1203) के दरबारी कवि जगनिक ने अपने ग्रंथ आल्ह खंड में कालपी के हाथ कागज का उल्लेख करते हुए लिखा है कि ‘कागज लैके कालपी वाला अपना कलमहान लै हाथ, लिखी हकीकत पृथ्वीराज को पढ़ियांे जाए वीर चौहान । कागज लैके कालपी वालो अपनी कलम लई उठाय, चिट्ठी लिखके परमालिक को औधावन के दई पढ़ाय’। इसके बाद 864 ई में फर्रूखाबाद के कलेक्टर सर चाल्र्स ऐडियट ने आल्ह खंड में इसका संग्रह कराया। इस दोहे से यह सिद्ध होता है कि हाथ कागज कालपी का 900 साल पुराना है। इसी बात का तस्दीक इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के एस रहमान ने अपने आल्हा ऊदल से संबंधित लेखों में किया है। इसी तरह का उल्लेख अपनी पुस्तक पृथ्वीराज रासो के प्रसिद्ध कवि चंदरवरदाई भी करते है। इसके  अलावा विदेश से आए विभिन्न यात्रियों एवं अंग्रेज अधिकारियों ने अपने यात्रा वृतांत में हाथ कागज का केंद्र कालपी का उल्लेख किया है। इसमें प्रमुख रुप से उन्नीसवीं सदी में आए डार्ड हंटर ने अपनी किताब में इसका उल्लेख करते हुए यहां प्रमुख कागज व्यवसायी रामसहाय गुप्ता को सम्मानित किया था।

हाथ कागज का काम कालपी में सैंकड़ों वर्ष पुराना है। यह स्थान यमुना नदी के किनारे है और कागजियों का मुहल्ला कागजीपुरा के नाम से प्रसिद्ध है। यहां हाथ कागज के निपुण कारीगर पीढियों से यह कला अपने बच्चों को सिखा रहे है। 

कैसे बनता है हाथ कागज
उ0 प्र0 हाथ कागज निर्माता समिति के अध्यक्ष नरेंद्र कुमार तिवारी, पूर्व अध्यक्ष नवीन गुप्ता, प्रदेश महामंत्री हाजी सलीम, पदमकांत पुरवार आदि बताते है कि पहले कागज की करतन को तीन चार दिन फैक्ट्री के पानी की हौद में सड़ाया जाता था। फिर कारीगर उसकी लुगदी बनाकर अपने हाथों से उस लुगदी को रोटियों जैसी बनाकर दीवार में चिपका देते थे। जो कई दिन बाद सूखने के बाद उससे हाथ कागज बनाया जाता था। इस कागज से लेटरपैड, फाइल कवर, शादी कार्ड, विजिटिंग कार्ड, झोले आदि बनाए जाते थे। जो देश ही नहीं विदेशों में भी खासे लोकप्रिय थे। उन्होंने बताया कि अब हाथ कागज टेलरों द्वारा जो कपड़ों की कतरन निकाली जाती है। उसे विभिन्न शहरों से इकट्ठा किया जाता है। इस कतरन का वीटर मशीन पर पल्प तैयार किया जाता है। फिर इस लुगदी को कुशल कारीगर मोल्ड मशीन पर डालकर हाथ कागज की शीट तैयार करते है। यह कागज सौ से दो सौ साल तक चलता है। इसे रंगीन व चमकीला भी बनाया जाता है।

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