बुन्देलखण्ड में फेल स्किल इंडिया

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्किल इंडिया की शुरूआत की परन्तु अधिकारियों व लालची नेताओं की जुगलबंदी ने इसे बुन्देलखण्ड में फ्लाॅप कर दिया है।

बुन्देलखण्ड में फेल स्किल इंडिया

15 जुलाई 2015 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारत के ऐतिहासिक कौशल का वर्णन करते हुए प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना की नींव रखी। इस दरम्यान उन्होंने कहा कि इतिहास मे हमारे कौशल का लोहा विश्व मानता था, परंतु ऐसा क्या हुआ कि कौशल के क्षेत्र में हम पिछड़ते चले गए, और जरूरत हेै अब पुनः कौशल के क्षेत्र में सफलता की इबारत लिखने की। युवाओं के कौशलहीन होने का बड़ा प्रश्न रखते हुए आशा जताई थी, कि पुनः युवा कौशल मे पारंगत होकर रोजगार-स्वरोजगार के क्षेत्र की सफलता की नई कहानियां लिखेंगे। इसी उद्देश्य के साथ केन्द्रीय मंत्री राजीव प्रताप रूड़ी को कौशल विकास से संबंधित मंत्रालय दिया गया, किन्तु कुछ ही वर्ष में प्रथम मोदी सरकार ने ही यह मंत्रालय धर्मेंद्र प्रधान के जिम्मे कर दिया। चूंकि खबरों में राजीव प्रताप रूड़ी के ही संसदीय क्षेत्र ‘‘सारण’’ से इस योजना की असफलता वाली हकीकत सामने आने लगी थी।

इनके संसदीय क्षेत्र मे ही कौशल विकास केन्द्र की हालत पस्त नजर आई थी। ट्रेनिंग सेंटर में युवाओं के शोरगुल की जगह सुनसान माहौल नजर आया और वहाँ मौजूद सुरक्षा कर्मी का लगभग एक साल का वेतन स्थगित पाया गया। वहीं कंपनी ने जिस शख्स की जमीन किराए पर ले रखी थी , उनकी जमीन का किराया भी आशाओं की साख पर लटके हुए फल की तरह टपक कर झोली मे आने से रहा। इसलिये जमीन मालिक भी जमीन के फस जाने से परेशान रहे और किराया का फल ना मिलने से स्वयं को मजबूर-वंचित महसूस कर रहे थे।

देश भर में 2022 तक 40.2 करोड़ युवाओं को रोजगार संपन्न करने के स्वप्न वाली समृद्ध योजना की प्रथम तस्वीर ही निराशाजनक तस्वीर जनमानस के मानसिक पटल पर स्पष्ट नजर आती है। हालांकि सरकार एक आंकड़े के मुताबिक 10.4 करोड़ युवाओं को ट्रेंड करने की बात कहती है, और सरकार का यह भी कहना है कि किसी भी योजना की तरह इस योजना मे भी कोई जातिगत व धार्मिक भेदभाव नहीं किया गया। प्रत्येक धर्म और जाति के युवाओं को भेदभाव रहित ट्रेनिंग दी गई, जैसा कि इस सरकार के ऊपर धार्मिक भेदभाव करने का बड़ा आरोप लगता रहा है।

किन्तु निराशाजनक तथ्य यह है, कि बेरोजगारी के मामले में इस सरकार में पिछले पैंतालीस वर्ष मे सबसे अधिक बेरोजगारी दर होने की बात सामने आई है। इस तथ्य को सरकार सरकारी नौकरी ही रोजगार हैं, से इंकार करते हुए संस्थागत नौकरियों की बाढ़ आने की बात कहकर अपना बचाव करती है। लेकिन अभी भी युवाओं में सरकारी नौकरी के प्रति आकर्षण का अभाव नहीं हुआ है, वहीं कौशल विकास मिशन की जितनी सफलता की कहानी हैं, उससे अधिक असफलता की कहानियां सामने आई हैं।

बुन्देलखण्ड राष्ट्र का एक ऐसा भूभाग है, जहाँ पलायन एक बड़ा मुद्दा रहा है। पिछले दस-पंद्रह वर्षों से पलायन का मुद्दा अनेक कारणों से राष्ट्रीय पटल पर छाया रहा है। बुन्देलखण्ड से पलायन के मुद्दे को लेकर उत्तर प्रदेश की प्रत्येक सरकार कटघरे मे खड़ी नजर आई है। इसकी सबसे बड़ी वजह असमय बारिश का होना और कम वर्षा के कारण उत्पन्न सूखे के हालात रहे हैं, यहाँ तक की अकाल का सामना भी बुन्देलखण्ड करता रहा है। इस वजह से किसान आत्महत्या में बढ़ोतरी हुई, तो वहीं अभी भी यह सिलसिला थमा नहीं है।

कौशल विकास मिशन अठारह से पैंतीस वर्ष आयु वर्ग के युवाओं के लिए है, जबकि सर्वे के मुताबिक लगभग पैंतालीस साल के आयु वर्ग में बेरोजगारी की दर सबसे अधिक है। बुन्देलखण्ड में यह एक व्यापक समस्या है, कि पैंतालीस साल के आयु वर्ग के लोगों में भी रोजगार की भारी कमी है। यहाँ के लगभग नब्बे प्रतिशत परिवार सीधे किसानी से जुड़े हुए हैं। किन्तु कौशल विकास मिशन के तहत खेती-किसानी के संदर्भ मे आधुनिक कृषि के क्षेत्र में किसी प्रकार की कोई ट्रेनिंग सुविधा उपलब्ध नहीं है, यहाँ के वातावरण के मुताबिक ट्रेनिंग सेंटर में ट्रेनिंग नहीं दी गई है।

इससे यह बड़ा तथ्य निकलकर सामने आ रहा है कि पलायन रोकने के लिए गंभीरता से काम नहीं किया गया है। जबकि ट्रेनिंग सेंटर के माध्यम से जिन जाॅब-रोल की ट्रेनिंग प्रदान की गई, वे सभी प्रकार की जाॅब बुन्देलखण्ड से बाहर ही की जा सकती हैं। यही वजह है कि ट्रेनिंग सेंटर से निकलने के बाद नौकरी के लिए पलायन अपने दूसरे स्वरूप मे शुरू है।

जिन कौशल विकसित किए युवाओं को रोजगार मिला भी, वे कुछ ही महीने के पश्चात वापस घर चले आए। इसकी वजह बताई जा रही है कि युवा कम वेतन एवं असुविधा की वजह से नौकरी नहीं कर पाए। ऊपर से लोकल स्तर पर स्वरोजगार कर पाने मे भी नाकामयाब रहे।

उत्तर प्रदेश के बुन्देलखण्ड में कुल इक्कीस सेंटर हैं। जिनमें कुछ की हालत बेहतर है तो कुछ काम चलाऊ अंदाज से चल रहे हैं। वहीं कहीं-कहीं अघोषित ताला भी लटका हुआ है। जबकि कागज में सबकुछ दुरूस्त होने की बात सामने आती है। हाल ही में जनपद चित्रकूट में एक ट्रेनिंग सेंटर चल रहा है, जो फिलहाल नई दूल्हन की तरह सजा - धजा है। यहाँ लड़कियां सिलाई सीखती हैं और लड़के कम्प्यूटर का ज्ञान प्राप्त कर रहे हैं। इस सेंटर के अभी तीन महीने भी पूरे नहीं हुए हैं तो प्लेसमेंट की कोई बात ही नहीं है, जिसकी तस्वीर साल-छः महीने में कुछ स्पष्ट हो पाएगी। जैसे कि मुख्यमंत्री कौशल विकास मिशन के तहत चित्रकूट का सेंटर बंद मिला। संचालक से करने पर पता चला कि 2019-20 का कोई बजट सरकार द्वारा नहीं आया, इस बार उम्मीद है कि बजट आएगा और जाॅब - रोल के अनुसार कोर्स संचालित किया जाएगा, जिसकी तैयारियां चल रही हैं। 

इस तरह सरकारी दावों के बीच स्किल इंडिया अभियान की हकीकत कुछ और नजर आती है। अगर ये योजना ठीक तरह से जमीन पर लागू हो जाती, तो वास्तव में तस्वीर बदलने की ताकत रखती है। गंभीर बात है कि ब्लाक स्तर एवं ग्रामीण स्तर पर इस योजना की पहुंच ना के बराबर है। बहुत से ट्रेनिंग सेंटर जनपद स्तर पर ही चल रहे हैं, जिससे दूर-दराज गांव के युवाओं की पहुंच से दूर है। ऐसी संभावना है कि भविष्य मे ब्लाक स्तर पर ट्रेनिंग सेंटर चलाए जाएंगे, लेकिन 2022 को सिर्फ एक वर्ष और कुछ महीने ही शेष हैं तो ऐसे में सेंटर कब शुरू होगें ? और कब ग्रामीण युवाओं को ट्रेनिंग मिल पाएगी।

साथ ही ध्यान देने योग्य है कि बुन्देलखण्ड के वातावरण के अनुसार ट्रेनिंग दिया जाना आवश्यक है, जिससे युवा यहीं कोई स्वरोजगार शुरू कर सकें या फिर यहीं नौकरियां मिल सकें। जो निकट भविष्य में असंभव नजर आ रहा है। यहाँ का गरीब-मजदूर परिवार ईंट भट्टों से भी जुड़ा हुआ है, जो आसपास के क्षेत्र में ईंट पाथने जाता है। लेकिन स्किल इंडिया के तहत ऐसी कोई ट्रेनिंग नहीं दी जा रही है, कि इस प्रकार के रोजगार से लगे हुए परिवारों को स्वरोजगार मिल सके। कृषि के क्षेत्र में कौशल विकसित करने की जरूरत है और  कृषि भारत की आत्मा है। चूंकि कृषि प्रधान देश है तो आधुनिक कृषि को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा अच्छी जानकारी से भरी ट्रेनिंग देने पर किसान परिवार को राहत मिल सकती है।

सिलाई-कढ़ाई सिखाने का काम जरूर जोरों पर है। यह तमाम संस्थाओं के द्वारा भी कराया जाता रहा है और स्किल इंडिया के तहत भी ऐसा प्रोग्राम सबसे पहले चलाया जाता है। अब चिंता की बात है कि सिलाई-कढ़ाई जैसे क्षेत्र आखिर कितना रोजगार मिल जाएगा। क्या इससे जीवन स्तर मे सुधार आएगा ?

बुन्देलखण्ड में अच्छी ड्राइविंग की जरूर कमी है। यहाँ बड़ी सूझबूझ से ड्राइविंग करने वाले लोग बहुत कम हैं। ट्रांसपोर्ट का व्यवसाय भी खूब है और इस तरह के व्यवसाय में रूचि रखने वाले लोग भी हैं। यदि यहाँ ड्राइविंग की ट्रेनिंग दी जाए तो अवश्य बहुत से युवाओं को रोजगार मिल सकता है और संभावनाएं हैं कि भविष्य में कोई स्वरोजगार शुरू कर सकें।

केन्द्र सरकार को 2024 तक रोजगार के संदर्भ देश को जवाब देना ही होगा। इस संदर्भ मे सरकार पर सवाल भी खड़े होने लगे हैं। यह योजना भी रोजगार केन्द्रित है, और सरकार विशेष ध्यान दे तो कागज पर चल रहे सेंटर पर कार्रवाई कर सकती है, चूंकि पूरे देश में सात फीसदी ट्रेनिंग सेंटर कागज पर चलने की बात सामने आई है। जो इससे अधिक भी हो सकती है। वहीं इक्कीस फीसदी सेंटर पर बेसिक इक्विपमेंट ना होने की बात भी सामने आई, इस तरह की निराशाजनक जानकारी आने से प्रतीत होता है कि सबकुछ कागजों और जुबान पर अच्छा हो रहा है, पर जमीन में मिलाजुला असर है।

अंततः सरकार के साथ काम करने वाले व्यक्ति और संस्थाओं को भी राष्ट्रीय कर्तव्य ईमानदारी से निभाने को सोचना चाहिए। चूंकि यह विचार व्यापक है कि किसी भी राष्ट्र का निर्माण वहाँ के नागरिक करते हैं। अतः ईमानदारी से कर्तव्य का निर्वहन हो तो सरकार की प्रत्येक योजना अच्छा प्रदर्शन कर सकती है। सरकार योजना बनाकर धन मुहैया कराती है और संचालन करने वाले अधिकारी-कर्मचारी और समाज का कोई ना कोई व्यक्ति होता है तो अच्छे परिणाम तभी मिलते हैं, जब समग्र प्रयास अच्छे मन और पूरी ताकत व ईमानदारी से किए जाएं।

किन्तु चिंता इस बात की है कि अच्छी मंशा से शुरू की हुई योजना किसी ना किसी कमी और वजह से एक असफल योजना की पहचान बनती जा रही है। इसकी एक बड़ी वजह यह भी है कि जिन युवाओं को प्लेसमेंट दिया गया, उनका घर से मीलों दूर या तो मन नहीं लगा अथवा कम वेतन और असुविधा के चलते घर वापस चले आए। अंततः उद्देश्य पाकर भी उद्देश्य विहीन हो जाना इस योजना की हकीकत है।

देश भर में 2022 तक 40.2 करोड़ युवाओं को रोजगार संपन्न करने के स्वप्न वाली समृद्ध योजना की प्रथम तस्वीर ही निराशाजनक तस्वीर जनमानस के मानसिक पटल पर स्पष्ट नजर आती है। हालांकि सरकार एक आंकड़े के मुताबिक 10.4 करोड़ युवाओं को ट्रेंड करने की बात कहती है। उत्तर प्रदेश के बुन्देलखण्ड में कुल इक्कीस सेंटर हैं। जिनमें कुछ की हालत बेहतर है तो कुछ काम चलाऊ अंदाज से चल रहे हैं। वहीं कहीं-कहीं अघोषित ताला भी लटका हुआ है। जबकि कागज में सबकुछ दुरूस्त होने की बात सामने आती है। हाल ही में जनपद चित्रकूट में एक ट्रेनिंग सेंटर चल रहा है, जो फिलहाल नई दूल्हन की तरह सजा-धजा है। यहाँ लड़कियां सिलाई सीखती हैं और लड़के कम्प्यूटर का ज्ञान प्राप्त कर रहे हैं। कौशल विकास मिशन अठारह से पैंतीस वर्ष आयु वर्ग के युवाओं के लिए है, जबकि सर्वे के मुताबिक लगभग पैंतालीस साल के आयु वर्ग में बेरोजगारी की दर सबसे अधिक है।

बुन्देलखण्ड में यह एक व्यापक समस्या है, कि पैंतालीस साल के आयु वर्ग के लोगों में भी रोजगार की भारी कमी है। यहाँ के लगभग नब्बे प्रतिशत परिवार सीधे किसानी से जुड़े हुए हैं। किन्तु कौशल विकास मिशन के तहत खेती-किसानी के संदर्भ मे आधुनिक कृषि के क्षेत्र में किसी प्रकार की कोई ट्रेनिंग सुविधा उपलब्ध नहीं है, गंभीर बात है कि ब्लाक स्तर एवं ग्रामीण स्तर पर इस योजना की पहुंच ना के बराबर है। बहुत से ट्रेनिंग सेंटर जनपद स्तर पर ही चल रहे हैं, जिससे दूर-दराज गांव के युवाओं की पहुंच से दूर है। ऐसी संभावना है कि भविष्य मे ब्लाक स्तर पर ट्रेनिंग सेंटर चलाए जाएंगे। वहीं 2022 को सिर्फ एक वर्ष और कुछ महीने ही शेष हैं तो ऐसे में सेंटर कब शुरू होगें ? और कब ग्रामीण युवाओं को ट्रेनिंग मिल पाएगी। जिन कौशल विकसित किए युवाओं को रोजगार मिला भी, वे कुछ ही महीने के पश्चात वापस घर चले आए। इसकी वजह बताई जा रही है कि युवा कम वेतन एवं असुविधा की वजह से नौकरी नहीं कर पाए। ऊपर से लोकल स्तर पर स्वरोजगार कर पाने मे भी नाकामयाब रहे। इससे यह बड़ा तथ्य निकलकर सामने आ रहा है कि पलायन रोकने के लिए गंभीरता से काम नहीं किया गया है। जबकि ट्रेनिंग सेंटर के माध्यम से जिन जाॅब-रोल की ट्रेनिंग प्रदान की गई, वे सभी प्रकार की जाॅब बुन्देलखण्ड से बाहर ही की जा सकती हैं। यही वजह है कि ट्रेनिंग सेंटर से निकलने के बाद नौकरी के लिए पलायन अपने दूसरे स्वरूप मे शुरू है। बुन्देलखण्ड के वातावरण के अनुसार ट्रेनिंग दिया जाना आवश्यक है, जिससे युवा यहीं कोई स्वरोजगार शुरू कर सकें या फिर यहीं नौकरियां मिल सकें। जो निकट भविष्य में असंभव नजर आ रहा है। यहाँ का गरीब-मजदूर परिवार ईंट भट्टों से भी जुड़ा हुआ है, जो आसपास के क्षेत्र में ईंट पाथने जाता है। लेकिन स्किल इंडिया के तहत ऐसी कोई ट्रेनिंग नहीं दी जा रही है, कि इस प्रकार के रोजगार से लगे हुए परिवारों को स्वरोजगार मिल सके। कृषि के क्षेत्र में कौशल विकसित करने की जरूरत है और  कृषि भारत की आत्मा है। चूंकि कृषि प्रधान देश है तो आधुनिक कृषि को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा अच्छी जानकारी से भरी ट्रेनिंग देने पर किसान परिवार को राहत मिल सकती है।

 सौरभ द्विवेदी

(लेखक बुन्देलखण्ड न्यूज के समाचार विश्लेषक हैं)

 

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