युद्ध नवंबर के पहले या बाद में ? 

पैंगोग पर गलवान की तरह भारत - चीन सेना की झड़प की खबर एक बार फिर सुर्खियां बनी हुई हैं , परंतु देशवासियों को उत्तेजित होने की अपेक्षा वैश्विक गतिविधि पर नजर रखने की जरूरत है। चूंकि अभी युद्ध की आहट भर हो रही है , इससे बड़ा युद्ध अमेरिकी चुनाव है। अमरीका मे राष्ट्रपति का चुनाव चल रहा है और कोरोना वायरस का जनक चीन को माना जा रहा है...

युद्ध नवंबर के पहले या बाद में ? 

वैश्विक महाशक्ति अमेरिका में वायरस की वजह से हालात बहुत चिंताजनक हुए हैं। वहाँ के नागरिक अन्य राष्ट्र के नागरिकों की अपेक्षा अधिक जागरूक हैं। जिससे महामारी पर नियंत्रण ना हो पाने से कम से कम एक राष्ट्रपति का सत्ता से बाहर हो जाना कोई बड़ी बात नहीं है। इसलिए चीन पर अमेरिका हमलावर हुआ। चूंकि वायरस चीन मे बना ऐसा माना जा रहा है , वहीं बहुत से विशेषज्ञ इसे प्रकृति जनित कह रहे हैं।

इधर संपूर्ण विश्व की एक लाॅबी चीन के खिलाफ सक्रिय हुई। जिसके कारण सिर्फ वायरस नहीं है। उसके अनेक कारण हैं। जिसमें विदेशी निवेश से लेकर वैश्विक अर्थव्यवस्था की अदृश्य जंग व्याप्त है , यह एक व्यापारिक युद्ध भी है।

चीन की नजर भी अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव पर टिकी है। अगर ट्रंप अमेरिका के पुनः राष्ट्रपति बनते हैं तो चीन पर भारी दबाव रहेगा लेकिन इस मसले का अंत अंततः बातचीत से होने की बड़ी संभावनाएं हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव तक यह अनवरत चलने वाला है। जिसमें भारत - चीन के पड़ोसी हितों के मद्देनजर युद्ध की संभावनाएं अधिक बन रही हैं।

असल में पहले चीन पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद के रास्ते भारत में अपने हित साधता था। इधर भारत से चीन का व्यापार शुरू रहता उधर पाकिस्तान के आतंकवाद को पोषित कर भारत को दहलाता रहता और पाकिस्तान व चीन की एक नजर सिर्फ और सिर्फ जम्मू-कश्मीर पर थी।

केन्द्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर के मामले को संवैधानिक तरीके से हल कर दिया है व इसकी बड़ी संभावना है कि भारत में वामपंथ अब शीघ्र सत्ता के केन्द्र मे आकर ताकतवर नहीं होने वाला है। कांग्रेस से चीन के मधुर संबंध जगजाहिर हो चुके हैं तो यह ही तय है कि कांग्रेस भी शीघ्र सत्ता मे आती नजर नहीं आ रही है। यही चीन की विस्तारवाद की नीति के लिए बड़ी चिंता का विषय है और इधर भारत की वैश्विक पहचान एक सशक्त राष्ट्र के रूप मे बन चुकी है। विश्व बिरादरी मे भारत ने मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई है।

इसलिए सीमा पर चीन उथल-पुथल मे डटा हुआ है। वह अंततः बातचीत के जरिए अपने व्यापारिक हितों को साधना चाहता है और वैश्विक स्तर पर पुनः रिश्तों को ताजा करना चाहता है , जबकि चीन की वैश्विक पहचान खतरे मे पड़ चुकी है।

इसलिए भारत की जनता को नवंबर मे अमेरिकी चुनाव तक इंतजार करना चाहिए और धैर्य धारण कर वैश्विक घटनाक्रम पर नजर बनाए रखना चाहिए। यह भी सत्य है कि चीन की कोशिश भारत की सत्ता को प्रभावित करने की भी है। लेकिन घुसपैठ करने की कोशिश और झड़प के साथ यह नवंबर तक चलने वाला है। युद्ध नवंबर के बाद होगा या नहीं यह शीघ्र ही स्पष्ट होगा।

लेखक: सौरभ द्विवेदी, समाचार विश्लेषक

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