नामांकन में ही दिखाई दी झलक, चेयरमैनी पत्नियों के बजाय करेंगे पति 

निकाय चुनाव के लिए नामांकन का सोमवार को आखिरी दिन था। नामांकन करने के लिए सभी प्रमुख राजनीतिक दलों...

नामांकन में ही दिखाई दी झलक, चेयरमैनी पत्नियों के बजाय करेंगे पति 

बांदा, निकाय चुनाव के लिए नामांकन का सोमवार को आखिरी दिन था। नामांकन करने के लिए सभी प्रमुख राजनीतिक दलों के प्रत्याशी भारी तामझाम के साथ नामांकन करने पहुंचे थे। नामांकन के दौरान जब मीडिया ने महिला प्रत्याशियों से सवाल किए तो जवाब देने में वह असहज नजर आई। जो सवालों का जवाब वह नहीं दे पाई, उनका जवाब पतियों ने दिया। कुछ महिला प्रत्याशियों के पतियों ने तो अपने बयान में यह सच्चाई उगल दी। कि अध्यक्ष की कमान पत्नी नहीं उनके पास रहेगी।

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ग्राम पंचायत से लेकर लोकसभा चुनाव तक महिलाओं की भागीदारी बढ़ रही है। पहले महिलाएं घूंघट में रहती थी और उनके पति पद का इस्तेमाल करते थे। लेकिन धीरे-धीरे स्थितियां बदल रही हैं। लेकिन जिले में निकाय चुनाव में राजनीतिक दलों ने जिन महिला प्रत्याशियों का चयन किया है। उनमें अधिकांश घरेलू महिलाएं हैं। जिनका राजनीति से कोई लेना देना नहीं है। जातीय समीकरण के चलते राजनीतिक दलों ने राजनीति में सक्रिय महिलाओं को महत्व देने के बजाय उन महिलाओं को महत्त्व दिया है जिनके पति राजनीति में सक्रिय हैं।

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बांदा नगर पालिका को ही ले लें। यहां समाजवादी पार्टी ने नगर पालिका के पूर्व चेयरमैन मोहन साहू की पत्नी श्रीमती गीता मोहन साहू को चुनाव मैदान में उतारा है। नामांकन के बाद उन्होंने कहा कि जिस तरह मेरे पति ने अपने कार्यकाल में नगर के विकास में योगदान दिया है ठीक उसी तरह मैं भी काम करूंगी। वही पूर्व नगरपालिका अध्यक्ष ने कहा कि हम पति-पत्नी मिलकर नगर का विकास करेंगे। मतलब साफ है कि अगर पत्नी चुनाव जीती तो कमान उनके पति के हाथों में होगी।

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ठीक इसी तरह से नामांकन करने पहुंची बहुजन समाज पार्टी की उम्मीदवार रिजवाना नोमानी भी घरेलू महिला है। वह भी पत्रकारों का जवाब नहीं दे पा रही थी। उनके पति ए एस नोमानी जवाब देने की कोशिश कर रहे थे। नामांकन के दौरान नकाब में पहुंची रिजवाना ने टूटे-फूटे शब्दों में जवाब दिया। इस दौरान नोमानी ने अपने वक्तव्य में इस तरह की बात की जैसे उनकी पत्नी के बजाय वह स्वयं उम्मीदवार हो।


भाजपा की उम्मीदवार मिष्ठान विक्रेता रामकिशुन गुप्ता की पत्नी है। वह भी राजनीति में पूरी तरह सक्रिय नहीं है। उन्हें भी घरेलू महिला कहा जा सकता है। जमीनी स्तर पर उनके द्वारा कराया गया कोई खास कार्य नजर नहीं आता है। फिर भी पार्टी द्वारा उन्हें अधिकृत प्रत्याशी बनाकर चुनाव मैदान में उतारा गया है। कांग्रेस के पूर्व जिलाध्यक्ष राजेश दीक्षित राजनीति के धुरंधर खिलाड़ी हैं। पत्नी शिक्षित हैं। उन्होंने तिंदवारी विधानसभा सीट से चुनाव भी लडा है। केवल इतनी उनकी पहचान है। बाकी राजनीति में सक्रियता नजर नहीं आती है।


इस बारे में आम मतदाताओं का कहना है कि नगर निकाय चुनाव 5 साल में होता है। एक बार गलत उम्मीदवार चुन लिया तो पूरे 5 वर्षों से झेलना पड़ता है। यही समय है कि प्रत्याशियों की पूरी जानकारी ले। बदलाव सिर्फ कहने से नहीं होगा। ऐसे प्रत्याशी को चुनना होगा। जो क्षेत्र भ्रमण कर लोगों की समस्या सुने ,जनता से सीधा संवाद करें। पार्षद पति मुखिया पति जैसी पहचान से बचें। ऐसे ही प्रत्याशी को प्राथमिकता देना चाहिए ।

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