Chitrakoot में सड़कों का बुरा हाल, कहाँ खर्च हो रहा Janta का Paisa ?

चित्रकूट में परिवहन विभाग की तरफ से हर साल यातायात नियमों के बारे में समझाया जाता है, लेकिन हकीकत क्या है इसकी सीधी तस्वीरें चित्रकूट मुख्यालय के पटेल चैक से आज हम आपको दिखाएंगे..


चित्रकूट में परिवहन विभाग की तरफ से हर साल यातायात नियमों के बारे में समझाया जाता है लेकिन हकीकत क्या है इसकी सीधी तस्वीरें चित्रकूट मुख्यालय के पटेल चैक से आज हम आपको दिखाएंगे।

परिवहन विभाग हर 6 महीने या साल में अपने नियमों और उनकी जानकारी जनता तक पहुंचाने के लिए प्रचार-प्रसार करता है और इसी बावत लाखों करोड़ों रुपए पानी की तरह बहा दिये जाते हैं। बावजूद इसके उस प्रचार प्रसार के बदले हमें क्या मिलता है वह भी देख लीजिए।

जी हां, हम बात कर रहे हैं चित्रकूट जिले की, कहने को तो ये धर्मनगरी है, मुख्यमंत्री योगी की प्राथमिकता में शामिल है, पर इसके मुख्यालय कर्वी में ही आप टूटी हुई सड़कांे को देख सकते हैं।

दरअसल पटेल चैक यहां का मुख्य चैराहा है और साल में कम से कम 20 सरकारी कार्यक्रमों का आयोजन यहीं किया जाता है। यहीं पर जिले का सबसे बड़ा इंटर काॅलेज सीआईसी भी है, सैकड़ों छात्र इसी रोड से आते जाते हैं। इसी रोड को मध्यप्रदेश के सतना तक जाने के लिए बाईपास के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। भारी भरकम वाहन इसी रोड से निकाले जाते हैं। यहां तक कि रोज ओवरलोड गिट्टी और तारकोल से भरे हजारों ट्रक निकाले जाते हैं, लेकिन अधिकारियों की नजर इन पर पड़ती कहां है। क्योंकि सब पैसे और कमीशन का खेल है, कोई नेता या अधिकारी आता है तो टूटी रोड की तुरंत मरम्मत हो जाती है, लेकिन वो भी टेम्परेरी। यानि ठोस काम केवल कागज पर, बाकी जनता सब जानती है। 
यहां आने वाला हर अधिकारी इसी रास्ते से कम से कम एक बार जरूर निकलता है। चित्रकूट जिले से लखनऊ बैठे अधिकारियों की दूरी लगभग 300 किलोमीटर है और अधिकारियों को कैसे घुमाना है, ये कोई चित्रकूट के अधिकारियों से सीखे। पीडब्ल्यूडी विभाग भी यहां से लगभग 1 किलोमीटर की दूरी पर इसी रोड पर है। इस विभाग के अधिकारियों का भी यहीं से आना जाना होता है, लेकिन मौत के मुंह से निकलना और देख कर मुंह मोड़ लेना इन अधिकारियों के लिए भी रोज काम है।

जनपद की सड़कों को गड्ढा मुक्त करने के लिए बजट भी आता है, डीएम शेषमणि पांडे भी कई बार सख्त होते हैं, पर सरकारी धन का बंदरबांट करने वाले अधिकारी और ठेकेदार मिलकर सरकार की फजीहत कराने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ते। योगी सरकार का गड्ढा मुक्त सड़कों का अभियान इन्हीं भ्रष्ट अधिकारियों की वजह से गड्ढायुक्त बनता जा रहा है। 
बीते दिन यातायात नियमों कोे लेकर परिवहन विभाग ने एक रैली का आयोजन किया था, उस रैली में शामिल एक टैक्सी में बाजा बज रहा था, ‘‘हेलमेट लगाकर चलें, सीट बेल्ट लगा कर चलें’’। लेकिन क्या यह वाकई में सच हो सकता है कि एकमात्र हेलमेट से ही हमारी जान बच सकती है? क्या भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ीं ये खराब सड़कें किसी की जान बख्श सकती हैं? ये अधिकारियों को दिखाई देता? गरीब जनता जब गाड़ी लेती है तो उसका रोड टैक्स सरकार जमा करा लेती है, लेकिन उस टैक्स का कितना इस्तेमाल सरकारी अमला करता है, उसका उदाहरण आज आपको देखने को मिल जाएगा जब जनपद की रोड ही गड्ढा युक्त हैं तो केवल हेलमेट ही हमारी जान कैसे बचा सकता है?
2019 में एक सर्वे के अनुसार उत्तर प्रदेश में 42,572 दुर्घटनाओं में 22,655 लोगों की मौत हुई हो चुकी है और 28,932 लोग गंभीर रूप से घायल हो गए। मतलब प्रतिदिन औसतन 117 दुर्घटनाओं में से 62 लोगों की मृत्यु हो जाती है, जिसमें प्रति घंटा 5 दुर्घटनाओं में 2-3 लोगों की मृत्यु होती है। आखिर कोई यह क्यों नहीं समझना चाहता कि हमारे देश में आधे से ज्यादा रोड ही खराब हैं और इन्हीं रोडों के खराब होने के चलते हमारे देश में सबसे ज्यादा एक्सीडेंट होते हैं। जिसमें यह कहकर पल्ला झाड़ लिया जाता है कि आपने हेलमेट नहीं लगाया था या सीट बेल्ट नहीं लगाया। या फिर आप इस गाड़ी को चलाने में सक्षम नहीं थे। मतलब सरकारी आंकड़े केवल देखने में अच्छे लगते हैं, धरातल में उनकी क्या स्थिति है यह जवाब शहर या हाईवे की इन सड़कों में देखने को मिलेगा।

चित्रकूट जनपद को 400 करोड़ से ज्यादा का बजट केवल सड़कों को बनाने में दिया गया है। हाल ही में चित्रकूट जनपद में सूबे के डिप्टी सीएम केशव मौर्य का आगमन हुआ था जिसमें सालों से टूटी पड़ी ट्रैफिक चैराहे पर पीडब्ल्यूडी आॅफिस की सड़क, जोकि लगभग 40 मीटर खराब पड़ी थी, लेकिन डिप्टी सीएम के आने की सुगबुगाहट ने प्रशासन के कान खड़े किये और सालों से टूटी यह सड़क मात्र 2 घंटे में सजधज कर अगवानी के लिए तैयार कर दी गयी। डिप्टी सीएम केशव मौर्य ने कहा कि हमारे प्रदेश में सड़कें अच्छी गुणवत्ता की बनाई जा रही हैं, लेकिन जब बुन्देलखण्ड न्यूज का कैमरा आॅन होता है तो अवर अभियंता अरविंद कुमार जवाब देने के बजाय कैमरा बंद करने की नसीहत दे डालते हैं। और कहते हैं कि एक्सीडेंट में मरने वालों की संख्या लापरवाही का कारण बढ़ जाती है।

लेकिन हम पूंछते हैं, कोई यह क्यों नहीं कहता कि जनता के द्वारा दिये गये टैक्स का इस्तेमाल अधिकारी लोगों की जेबों में क्यों जाता है? जहां परिवहन विभाग का कार्यक्रम चल रहा था वहीं पर कुछ दिन पहले रोड का लेपन कर दिया गया था ताकि मंत्री जी को रोड के हाल बेहाल न दिखें। जबकि उन्हें उसी के बगल की टूटी पड़ी सड़क नही दिखी और फिर उसी परिवहन विभाग ने वहां कार्यक्रम का आयोजन किया। डीएम, एसपी, आरटीओ सहित जिले के आला अधिकारी भी वहां मौजूद रहे। एसपी अंकित मित्तल और डीएम शेषमणि पांडे ने रैली को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया। लेकिन गड्ढे के बगल से निकलती रैली साहब को नहीं दिखी जो मौत का कारण बन सकती है और ताज्जुब ये कि हेलमेट को भगवान का रूप बताया जा रहा है।

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