वीर भूमि के वीर सपूत आल्हा ऊदल की आज भी गाई जाती है शौर्य गाथाएं

भारत के इतिहास के पन्नों में अनेक वीरों के शौर्य और साहस की गाथाएं मौजूद हैं...

वीर भूमि के वीर सपूत आल्हा ऊदल की आज भी गाई जाती है शौर्य गाथाएं

महोबा। भारत के इतिहास के पन्नों में अनेक वीरों के शौर्य और साहस की गाथाएं मौजूद हैं। महाराणा प्रताप, रानी लक्ष्मीबाई और छत्रपति शिवाजी आदि, ये ऐसे नाम हैं जिन्होंने अपनी वीरता और युद्ध कौशल से सभी को चौंका दिया। ऐसे ही दो वीर योद्धा हुए बुंदेलखंड के आल्हा और ऊदल, इन वीरों की वीरता की जितनी भी प्रशंसा की जाए वो कम है। कवि जागनिक की मशहूर कविता (आल्हा खंड) में इन दोनों के द्वारा लड़ी गई 52 लड़ाइयों का वर्णन है।

12वीं सदी में बुदेलखंड के महोबा जिले के दशरथपुरवा गांव में दो ऐसे भाइयों का जन्म हुआ था जो बचपन से ही बहुत पराक्रमी थे। पराक्रमी होने के साथ-साथ इनको शास्त्रों का ज्ञान भी था। इन दोनों भाइयों के पराक्रम को देखते हुए इन्हें युधिष्ठिर और भीम का अवतार भी बताया जाता है। आल्हा-ऊदल की गाथा उत्तर प्रदेश के एक बड़े हिस्से जैसे बुंदेलखंड, कन्नौज और कानपुर आदि तक में मशहूर है। बुंदेली इतिहास में तो आल्हा-ऊदल का नाम बड़े ही सम्मान के साथ लिया जाता है,यहां तक कि बुंदेलखंड में आज भी इनकी वीरगाथाएं गाई जाती है। दोनों को दक्षराज का पुत्र माना जाता है। दक्षराज चंदेलवंशी राजा परमाल के सेनापति थे।

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आल्हा को मां शारदा का परमभक्त माना जाता है, साथ ही ऐसा भी कहा जाता है कि मां ने उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें अमरता का वरदान दिया था। आज भी बैरागढ़ के मां शारदा के मंदिर को लेकर ऐसी मान्यता है कि वहां हर रात आल्हा मां की आराधना करने के लिए आते हैं। रात को सफाई करने के बाद मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं, लेकिन सुबह जब ये कपाट खुलते हैं तो यहां पूजा करने के साक्ष्य प्राप्त होते हैं।

इतिहाविद एवं वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र अग्निहोत्री बताते हैं कि आल्हा और ऊदल दोनों का आखिरी युद्ध दिल्ली के शासक पृथ्वीराज चौहान के साथ हुआ था। जब बुंदेलखंड को जीतने के इरादे से पृथ्वीराज चौहान ने चंदेल शासक राजा परमाल पर हमला किया था।तब उस समय वीरभूमि महोबा चंदेलों की राजधानी हुआ करता था। बैरागढ़ की एक बड़ी लड़ाई में आल्हा के भाई ऊदल वीरगति को प्राप्त हो गए थे। इसके बाद आल्हा ने पृथ्वीराज चौहान की सेना पर हमला बोल दिया था। घंटों तक चले युद्ध में पृथ्वीराज चौहान और आल्हा रण में एक दूसरे के आमने-सामने आ गए थे। आल्हा ने अपने पराक्रम से पृथ्वीराज चौहान को हरा दिया था। हालांकि ऐसा कहा जाता है कि अपने गुरु गोरखनाथ के आदेशानुसार आल्हा ने पृथ्वीराज चौहान को जीवनदान दिया था। इसके बाद आल्हा संन्यास लेकर मां शारदा की भक्ति करने लगे थे।

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आज भी गाई जाती है शौर्य गाथा

उन्होंने बताया कि आज के समय में भी बुंदेलखंड के लोग आल्हा गीत गाते हैं। बुंदेली कवियों के द्वारा आल्हा के गीत भी बनाए गए हैं, जो सावन के महीने में बुंदेलखंड के हर गांव में गया जाता है- जैसे पानीदार यहां का पानी आग, यहां के पानी में शौर्य गाथा के रूप से गाया जाता है, आदि। आज भी वहां शाम को चौपालों पर लोग आल्हा के गीतों का आनंद उठाते हैं। बुंदेलखंड में कई ऐसे स्थान हैं जो दोनों योद्धाओं की याद दिलाते हैं। यहां अधिकतर सामाजिक संस्कार आल्हा ऊदल की कहानी के बिना पूर्ण ही नहीं माने जाते हैं।

हिन्दुस्थान समाचार

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