बुन्देलखण्ड में बक्सवाहा जंगल के ढाई लाख से ज्यादा पेड़ों को बचाने की मुहिम तेज

बुन्देलखण्ड के छतरपुर इलाके में बक्सवाहा जंगल के नीचे दबे करीब 50000 करोड़ के हीरा उत्खनन के लिए ढाई लाख..

बुन्देलखण्ड में बक्सवाहा जंगल के ढाई लाख से ज्यादा पेड़ों को बचाने की मुहिम तेज
बक्सवाहा जंगल

बुन्देलखण्ड के छतरपुर इलाके में बक्सवाहा जंगल के नीचे दबे करीब 50000 करोड़ के हीरा उत्खनन के लिए ढाई लाख से ज्यादा पेड़ों को काटे जाने के खिलाफ शुरू हुआ आंदोलन उग्ररूप धारण करता जा रहा है।

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वन अधिकार कार्यकर्ता इस क्षेत्र में रहने वाले वन्यप्राणियों और आम लोगों के हित को देखते हुए पेड़ काटे जाने का विरोध. कर रहे हैं। मध्यप्रदेश का बक्सवाहा इस समय चर्चा में है। बक्सवाहा की जमीन के नीचे छिपा है बेशकीमती खजाना, जिसे हासिल करने के लिए राज्य सरकार ने एक निजी कंपनी को बक्सवाहा के जंगल 50 साल के लिए लीज पर दे दिया हैं।

लेकिन क्या इतना आसान है ये खजाना हासिल करना नहीं इसके लिए काटे जाएंगे ढाई लाख से ज्यादा पेड़। ढाई लाख से ज्यादा पेड़ो को काटने की तैयारी की जा रही है क्योंकि इस जमीन के नीचे छुपे हैं पन्ना से 15 गुना ज्यादा हीरे, और इन्हीं हीरो को हासिल करने के लिए 382.131 हेक्टेयर के जंगल का कत्ल किया जाएगा. जिसके लिए सरकार ने हामी भर दी है। लेकिन अब बुंदेलखंड के लोग अपने जंगलों को काटने देने को राजी नहीं है। स्थानीय लोगों ने सरकार के खिलाफ मुहिम छेड़ दी है।

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क्या है बक्सवाहा प्रोजेक्ट

सरकार ने 20 साल पहले छतरपुर के बक्सवाहा में बंदर प्रोजेक्ट के तहत सर्वे शुरू किया था। दो साल पहले मप्र सरकार ने इस जंगल की नीलामी की थी। जिसे आदित्य बिड़ला ग्रुप के एस्सेल माइनिंग एंड इंडस्ट्रीज लिमिटेड ने खनन के लिए खरीदा। हीरा भंडार वाली 62.64 हेक्टेयर जमीन को मध्यप्रदेश सरकार ने इस कंपनी को 50 साल के लिए लीज पर दिया है। लेकिन कंपनी ने 382.131 हेक्टेयर का जंगल मांगा है। कंपनी का तर्क है कि बाकी 205 हेक्टेयर जमीन का उपयोग खदानों से निकले मलबे को डंप करने में किया जाएगा. कंपनी इस प्रोजेक्ट में 2500 करोड़ रुपए का निवेश करने जा रही है।

जमीन से हीरा निकालने के लिए ढाई लाख से ज्यादा पेड़ों को काटा जाएगा। इसके लिए वन विभाग ने गिनती भी कर ली है। जंगल में बेशकीमती सागौन, जामुन, हेड़ा, पीपल. तेंदु, महुआ समेत कई पेड़ हैं। बिड़ला से पहले ऑस्ट्रेलियाई कंपनी रियोटिंटो ने बक्सवाहा का जंगल लीज पर लिया था। लेकिन मई 2017 में संशोधित प्रस्ताव पर पर्यावरण मंत्रालय के अंतिम फैसले से पहले ही रियोटिटों ने यहां काम करने से इंकार कर दिया था। कंपनी ने उस दौर में बिना अनुमति 800 से ज्यादा पेड़ काट डाले थे. अनुमान के मुताबिक बक्सवाहा के जंगलों की जमीन के नीचे 50 हजार करोड़ रुपए के हीरे हैं।

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इस महाविनाश को रोकने के लिए सोशल मीडिया पर बक्सवाहा बचाओ अभियान जैसे हैशटैग का उपयोग कर सरकर के इस फैसले का विरोध कर रहा है. वहीं 5 जून पर्यावरण दिवस के अवसर पर देशभर से पर्यावरणविद इस प्रोजेक्ट का विरोध करने के लिए छतरपुर स्थित बक्सवाहा के जंगलों की ओर कूच करेंगे। सोशल मीडिया से लेकर जमीनी स्तर तक सरकार के इस फैसले का विरोध हो रहा है।

स्थानीय युवाओं की तरफ से शुरु की गई इस मुहिम ने रंग लाना शुरू कर दिया है। एक्टिविस्ट अजय दुबे कहते हैं कि "बुंदेलखंड में बक्सवाहा के जंगलों की जैव विविधता को नष्ट करने की जल्दबाजी आत्मघाती कदम है और इसे तत्काल रोकना चाहिए "।मध्यप्रदेश की तत्कालीन कमलनाथ सरकार ने हीरों के लालच में बिड़ला समूह को न केवल लाखों पेड़ और वन्य प्राणियों की बर्बादी का रास्ता खोला बल्कि आम जनता के लिए ऑक्सीजन की सप्लाई लाइन काटने निंदनीय कार्य किया। जंगल में बेशकीमती पेड़ हैं, जानवर हैं यह क्षेत्र सघन वन से घिरा हुआ है। साथ ही यह क्षेत्र जैव विविधता से भी परिपूर्ण है।

मई 2017 में पेश की गई जियोलॉजी एंड माइनिंग मप्र और रियोटिंटो कंपनी की रिपोर्ट में इस क्षेत्र में तेंदुआ, भालू, बारहसिंगा, हिरण, मोर सहित कई वन्य प्राणियों के यहां मौजूद होने की बात कही गई थी। इतना ही नहीं इस क्षेत्र में लुप्त हो रहे गिद्ध भी हैं। राजू बताते हैं कि उन्होंने जब ग्राउंड रिपोर्ट की तो वहां जानवर दिखे और उनके निशान भी, लेकिन दिसंबर में प्रस्तुत की नही नई रिपोर्ट में डीएफओ और सीएफ छतरपुर ने यहां पर एक भी वन्य प्राणी के नहीं होने का दावा किया है। हीरे निकालने से इस क्षेत्र में बड़ी संख्या में पेड़ काटे जा रहे हैं। वहीं यहां मौजूद वन्य प्राणियों के अस्तित्व पर भी संकट खड़ा हो जाएगा।

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देशभर में ये मुद्दा गर्माने लगा है। दिल्ली की समाजसेविका नेहा सिंह ने 9 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है।अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि जंगल जरूरी हैं या हीरे, लोगों का कहना है कि हीरा निकालना है आप निकालिए, लेकिन उसके लिए इतने बड़े पैमाने पर पेड़ों को काटने की जरूरत क्या है. क्या ऐसा कोई रास्ता नहीं निकाला जा सकता है कि जंगल को ना काटा जाए।

कुल मिलाकर बक्सवाहा जंगल को बचाने कि इस अभियान मे हर वर्ग, हर उम्र के लोग शामिल हो चले हैं और सभी यही संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं कि जंगल तो नहीं कटने देंगे। एक तरफ जहां जंगल पर्यावरण के लिए जरूरी है तो दूसरी ओर बक्सवाहा इलाके के सैकड़ों गांव के हजारों परिवारों की आजीविका का साधन भी है। इसके अलावा वन्य प्राणियों का बसेरा भी यहां है । जल स्रोत है यहां संस्कृति भी बसती है यहां पर, इसलिए हर कोई जंगल बचाने की मुहिम में आगे आ रहा है।

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