दलहन उत्पादन में आत्मनिर्भरता के लिये सभी वैज्ञानिकों का प्रयास होना चाहियेः कुलपति

बुन्देलखण्ड के साथ-साथ पूरे देश में दलहन एवं तिलहन का उत्पादन बढ़ा है। मोटे अनाजों पर हमें और कार्य करने की आवश्यकता है..

दलहन उत्पादन में आत्मनिर्भरता के लिये सभी वैज्ञानिकों का प्रयास होना चाहियेः कुलपति

बुन्देलखण्ड के साथ-साथ पूरे देश में दलहन एवं तिलहन का उत्पादन बढ़ा है। मोटे अनाजों पर हमें और कार्य करने की आवश्यकता है। दलहन उत्पादन में हम आत्मनिर्भरता की ओर बढ़े इसके लिये हम सभी वैज्ञानिकों का प्रयास होना चाहिये। सशक्त एवं वैज्ञानिक पद्धति आधारित प्रसार कार्य से उत्पादन में वृद्धि अवश्य सम्भावी है।

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यह वक्तब्य कृषि विश्वविद्यालय, बाँदा के कुलपति प्रो नरेन्द्रप्रताप सिंह ने प्रसार निदेशालय, कृषि विश्वविद्यालय, बाँदा  एवं कृषि प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग संस्थान (अटारी) जोन-3, कानपुर के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित दो दिवसीय ‘‘समूह अग्रिम पंक्ति प्रर्दशन-दलहन तिलहन एवं सीड हब परियोजना’’की कार्यशाला में दिया।

उन्होने कहा कि कृषि विज्ञान केन्द्र कृषि क्रान्ती का केन्द्र है, तकनीकी प्रसार में प्रसार वैज्ञानिकों की भूमिका अति महत्वपूर्ण है। शोध उपरान्त क्षेत्रानुकूल तकनीकियों के प्रसार हेतु वैज्ञानिकों एवं कृषकों का जुड़ाव फलदायी सिद्ध होता है। बुन्देलखण्ड दलहन तिलहन का कटोरा है परन्तु अधिक उपज एवं उत्पादकता बढ़ाने हेतु हर सम्भव सार्थक प्रयास विश्वविद्यालय द्वारा किया जायेगा। मोटे अनाजों एवं लघु दालों का विकास कृषक स्तर पर करना अति आवश्यक है। 

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कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे कुलपति प्रो. सिंह ने यह भी कहा कि कृृषकों की आय में वृद्धि में दलहन, तिलहन एवं मोटे अनाज का महत्वपूर्ण स्थान है। मोटे अनाज वर्तमान में भूली बिसरी फसलों की श्रेणी में आ गया है। हमारे खाने की थाली से पिछले एक पीढ़ी से पूर्ण रूप से गायब है, जिसका असर हमें सुगर, हाई ब्लड प्रेषर, हृदय रोग, किडनी रोग, कुपोषण एवं अन्य बीमारियों के रूप में देखने को मिल रही है। प्रदेश के सभी जिलों में दलहन एवं तिलहन के उत्पादन को बढ़ाने के लिये नई तकनीकियों के प्रसार हेतु यह कार्यशाला आयोजित की गयी है। इस कार्यषाला में प्रदेश के सभी 86 कृषि विज्ञान केन्द्रों के वैज्ञानिक व प्रतिनिधि भाग ले रहें है। 

कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में आनलाईन जुडे़ भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली, के उप महाप्रबन्धक, कृषि प्रसार, प्रो. ए.के. सिंह ने कहा कि कृषि विज्ञान केन्द्रों की भूमिका कृषकों के बीच वैज्ञानिकता लाने की एक महत्वपूर्ण केन्द्र है। वैज्ञानिकों द्वारा आधुनिक प्रसार विधियों के साथ-साथ अग्रिम पंक्ति प्रदर्शन के माध्यम से तकनीकी प्रसारित किया जाना एक महत्वपूर्ण कदम है। इस कार्यशाला के माध्यम से वैज्ञानिक इसे और अच्छी तरह से कृषक प्रक्षेत्र पर स्थापित कर सकेंगे ऐसा मुझे पूरा विश्वास है।

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विशिष्ट अतिथि के रूप में रानी लक्ष्मीबाई केन्द्रीय कृषि विष्वविद्यालय, झांसी के अधिष्ठाता डा. एस.के. चतुर्वेदी ने कहा कि दलहन का उत्पादन 2001 में जितना था उतना आज हम सिर्फ चने का उत्पादन कर रहे है इस उपलब्धि में कृषि विज्ञान केन्द्र की सीड हब परियोजना की भूमिका महत्वपूर्ण है। बुन्देलखण्ड के साथ-साथ देश के अन्य क्षेत्रों में दाल के उत्पादन कम होने के क्या कारण है इस पर विचार करने की आवश्यकता है।

कृषि प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग संस्थान (अटारी) जोन-3, कानपुर के निदेषक डा. अतर सिंह ने कहा कि दलहन, तिलहन महत्वपूर्ण फसल है कृषि वैज्ञानिकों द्वारा समूह अग्रिम पंक्ति प्रदर्शन के माध्यम से क्षेत्रानुकूल तकनीकियों के प्रसार पर विषेष बल देना चाहिये। डा0 अतर सिंह ने कहा कि दो दिवसीय कार्यषाला में वैज्ञानिकों के द्वारा अपने कार्य, अनुभव एवं आ रही समस्याओं पर विचार साझा किया जायेगा एवं विषेषज्ञों द्वारा उचित प्रबन्धन के सुझाव भी दिये जायेंगे।

कृषि विष्वविद्यालय, बाँदा के निदेषक प्रसार प्रो.एन.के. बाजपेयी ने सभी  सभी जिलों व कृषि विज्ञान केन्द्रों से आये हुये वैज्ञानिकों का स्वागत किया।  सह निदेशक प्रसार डा. नरेन्द्र सिंह ने धन्यवाद ज्ञापित किया तथा डा. धीरज मिश्रा ने कार्यक्रम का संचालन किया। इस कार्यषाला में सह निदेशक प्रसार डा. आनन्द सिंह तथा सहायक निदेशक प्रसार डा. पंकज कुमार ओझा एवं विश्वविद्यालय के अधिकारी उपस्थित रहें।

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