भगवान श्रीकृष्ण के जीवन में राष्ट्रीयता की झलक

हमारे हिन्दू धर्म शास्त्रों में श्रीकृष्ण को भगवान का पूर्णावतार माना गया हैI श्रीकृष्ण का अवतार द्वापर युग में हुआ था..

भगवान श्रीकृष्ण के जीवन में राष्ट्रीयता की झलक
भगवान श्रीकृष्ण (Lord Shri Krishna)

डॉ. पंकज कुमार ओझा 

बाँदा कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, बाँदा

हमारे हिन्दू धर्म शास्त्रों में श्रीकृष्ण को भगवान का पूर्णावतार माना गया हैI  श्रीकृष्ण का अवतार द्वापर युग में हुआ था I ये माता देवकी के गर्भ से मथुरा के कारागार में पैदा हुए थे I श्रीकृष्ण का अवतार ऐसे समय में हुआ था जब पृथ्वी पर अन्याय, अधर्म, घृणा एवं अत्याचार अपने चरम पर था I हर जगह टकराव था I छोटे-छोटे राज्यों के बिच युद्ध की स्थिति थी I पूरा भारतवर्ष तत्कालीन आर्यावर्त विभिन्न छोटे-छोटे राज्यों में विभक्त था तथा ये सभी छोटे-छोटे राज्य अपने-अपने स्वार्थ में लिप्त थेI इनमे अपने सम्पूर्ण राष्ट्र के प्रति प्रेम, स्वार्थ एवं राष्ट्रीयता कि भावना का अभाव था I

फलस्वरूप आर्यावर्त (भारतवर्ष) पर यवनों का आक्रमण हुआ करता था I इन परिस्थितियों में भगवान को अवतार लेना पड़ा था I भगवन श्रीकृष्ण का अवतरण मनुष्य रूप में था इसलिए राष्ट्र एवं मानव हित में इन्हें ये सारी लीलाएं करनी पड़ी, जो एक मनुष्य के रूप में किया जाना चाहिए I भवान श्रीकृष्ण के जीवन का अवलोकन किया जाये तो हम ये देखते हैं कि भगवान् श्रीकृष्ण का जीवन राष्ट्रीयता से ओतप्रोत था I श्रीकृष्ण का बाल्यकाल गोकुल में बीता I बाल्यकाल में ही उन्होंने राष्ट्र विरोधी तत्वों जैसे पूतना, बकासूर आदि का विनाश कर लोगों की रक्षा किया I

भगवान श्रीकृष्ण (Lord Shri Krishna)

एक समय इंद्रा क्रोधित हो उठे और ब्रजवासियों पर प्रलयंकारी वर्षा करने लगे I वर्षा से ब्रज जन घबड़ा उठे, तन भगवान कृष्ण ने अपनी एक ऊँगली पर गोवर्धन पर्वत उठा कर घोर वर्षा से ब्रज कि रक्षा की I श्रीकृष्ण कि राष्ट्रीय भावना एवं राष्ट्र प्रेम से प्रेरित इस कार्य ने इंद्रा के अहंकार को चूर कर दिया I भगवन श्रीकृष्ण को अपने ब्रज से इतना लगाव था कि ब्रजवासी चाहे स्त्री हो या पुरुष , श्रीकृष्ण को अपनी आँखों से ओझल नहीं होने देना चाहते थे I श्रीकृष्ण को पता था कि कंस नाम का राक्षस मथुरावासियों को अपने आतंक से त्रस्त कर रखा था एवं उन्हें अनवरत प्रताड़ित क्र रहा था Iसयोग्वाश कंस के निमंत्रण पर श्रीकृष्ण को मथुरा जाना पड़ा और वहां जाकर उन्होंने कंस का वध कर मथुरावासियों को उसके अत्याचार से मुक्ति दिलाया I

श्रीकृष्ण ने रणछोर कहलाकर भी कालयवन नामक विदेशी आक्रमणकारी को नष्ट कर राष्ट्र का हित किया I  चूँकि भगवान श्रीकृष्ण को सम्पूर्ण भारतवर्ष से लगाव था, इसलिए उन्हें हर जगह अपना कर्तव्य निभाना पड़ा I मथुरा के बाद श्रीकृष्ण ने अपनी कार्यस्थली द्वारका को बनाया I द्वारका राज्य कि स्थापना किया तथा द्वारका की प्रजा का पालन किया I द्वारका राज्य का शासन ऐसा था जिसमे न कोई दुखी था और न ही कोई निर्धन था I सर्वत्र सुख-समृद्धि व्याप्त थी I भगवान श्रीकृष्ण द्वारा द्वारकाधिष के रूप में द्वारका कि सुरक्षा व्यवस्था चुस्त-दुरुस्त की गयी थी I

श्रीकृष्ण ने हस्तिनापुर में दुर्योधन द्वारा पाण्डवों पर किये जाने वाले अत्याचार को रोकने के लिए हस्तक्षेप किया I मगर दुर्योधन की दुर्बुद्धि ने उसे सँभलने नहीं दिया I तत्पश्चात भगवान श्रीकृष्ण ने पाण्डवों में राष्ट्रधर्म एवं राष्ट्रीयता कि भावना का अलख जगाते हुए पाण्डवों को अपना खोया हुआ राज्य प्राप्त करने को प्रेरित किया I राष्ट्रधर्म निभाने हेतु एवं राष्ट्रीयता की भावना को मजबूती प्रदान करने हेतु श्रीकृष्ण ने पाण्डवों उपदेश दिया I इसी क्रम में भगवान श्रीकृष्ण ने युद्ध के दौरान कुरुक्षेत्र में अर्जुन को राष्ट्रधर्म, क्षत्रिय-धर्म, कर्मयोग, ज्ञानयोग एवं भक्तियोग की शिक्षा दी I

भगवान श्रीकृष्ण (Lord Shri Krishna)

भगवान का यह अमर सन्देश गीता के रूप में आज भी जन-जन में राष्ट्रीयता, प्रेम, भक्ति, कर्मज्ञान को प्रसारित कर रहा है I श्रीकृष्ण ने अपने निर्देशानुसार पाण्डवोंसे युद्ध में आतताइयों को नष्ट कर पाण्डवोंको खोया हुआ राज्य वापस दिलाया I यदि हम भगवान श्रीकृष्ण के सम्पूर्ण जीवन का अवलोकन करें, तो हमें यह पता चलता है कि श्रीकृष्ण एक ऐसे महापुरुष थे जिनके हर कार्य राष्ट्रीयता कि भावना से ओतप्रोत थे I

भगवान ने अपने जीवन के हर क्षण को सत्य, प्रेम, निष्ठा, पालन, त्याग, धर्म, सत्कर्म इत्यादि में बिताया तथा धर्म कि रक्षा एवं राष्ट्र के कल्याण हेतु विध्वंसकारी, अत्याचारी, समाजविरोधी एवं राष्ट्रविरोधी तत्वों का विनाश किया I श्रीकृष्ण ने पूरे राष्ट्र को एक सूत्र में बांधने का कार्य किया I इन सभी उपर्युक्त गतिविधियों से यह सुस्पष्ट हो जाता है कि भगवान राष्ट्रप्रेमी थे तथा उनके ह्रदय में राष्ट्रीयता की भावना कूट-कूट कर भरी थी I भगवान श्रीकृष्ण कि इस उदात्त  राष्ट्रप्रेम से हम सभी को सबक लेनी चाहिए I

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