मीडिया पर सरकारी छापा, क्या आपातकाल की आहट है ?

पहले दैनिक भास्कर के विभिन्न ऑफिसों में छापे की खबर आती है तो थोड़ी देर बाद ही पता चलता है कि भास्कर अकेला नहीं है बल्कि...

मीडिया पर सरकारी छापा, क्या आपातकाल की आहट है ?
मीडिया पर सरकारी छापा, क्या आपातकाल की आहट है ?

सचिन चतुर्वेदी, प्रधान संपादक

पहले दैनिक भास्कर के विभिन्न ऑफिसों में छापे की खबर आती है तो थोड़ी देर बाद ही पता चलता है कि भास्कर अकेला नहीं है बल्कि भारत समाचार को भी लपेटा गया है। दैनिक भास्कर ने कोरोना काल में मोदी सरकार के विरोध में खूब खबरें चलाई थीं, क्या ये उसी का इनाम है?

ऑक्सीजन की कमी हो या लापरवाही, बदइंतजामी से हुई मौतें, और तो और फोन टेपिंग विवाद में 15 साल पुराना गुजरात का जासूसी कांड, ये सब सरकार को कटघरे में खड़ा करती हैं। अखबार भी क्या करे, सच तो दिखाना ही होगा। उधर सरकार चाहती है कि सच न दिखाया जाये, अलबत्ता वही दिखाया जाये जो सरकार कहे। सरकार का मानना है कि विज्ञापन भी तो वो इसीलिए देती है। पर अखबार जो जनता की आवाज है, उसे दबाना मतलब जनता की आवाज को दबाना ही होगा।

भारत समाचार भी कमोबेश ऐसा ही कर रहा था, लिहाजा उसे भी सरकार की टेढ़ी हुई भृकुटी से उत्पन्न आवेग को सहन करना ही था। उसके भी सम्पादक और प्रबन्धकों के घरों, कार्यालयों में छापे इसी बात की गवाही देते हैं।

आजादी के बाद से ही पत्रकारिता को किसी न किसी प्रकार मैनेज करने का उपक्रम जारी था। कोई कुछ भी कहे पर आज के दौर में तटस्थ जैसी कोई चीज नहीं है। हर व्यक्ति की अपनी एक विचारधारा होती है, और व्यक्तियों से मिलकर कोई संस्थान तैयार होता है। अगर एक जैसी विचारधारा के काफी लोग उस संस्थान में शामिल हो जाते हैं और उनकी विचारधारा किसी दल विशेष की विचारधारा से मेल खा जाती है तो उस पर सहज इल्जाम लग जाता है। इसीलिए लोगों के लिए खेल बन गया है कि किसी को गोदी मीडिया कह दिया तो किसी को कांग्रेस का गुलाम बता दिया, कोई वामपंथी मीडिया है तो कोई कुछ।

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मतलब अपने-अपने हिसाब से लोगों ने मीडिया को कैटेगराइज्ड कर रखा है। उधर ये भी फैक्ट है कि लगभग-लगभग हर सरकार ने मीडिया की आजादी को लगाम लगाने की भरसक कोशिशें की हैं। लेकिन इस भीड़ में तमाम अखबार/चैनल ऐसे भी थे, जो डटे रहे कि सच ही दिखायेंगे, चाहे कुछ भी हो जाये। पर ये कोशिश भी ज्यादा समय तक चलती नहीं है। देर-सबेर मैनेज होना या न होने पर बंद होना चलता रहता है।

दरअसल पत्रकारिता का ढांचा ही ऐसा है कि ज्यादा समय तक एकतरफा चलने से उसके टूटने का खतरा बढ़ता जाता है। इसीलिए कुछ लोग, जो मैनेजमेंट को जानते हैं, वो पत्रकारिता को बैलेंस करते रहते हैं। यानि सरकार की कमियां भी दिखानी है तो उनसे अखबार चलाने के लिए विज्ञापन भी लेना है। इस आर्थिक युग में अखबार/चैनल चलाना कोई बच्चों का खेल नहीं। आज ये किसी बिजनेस से ज्यादा मुश्किल हो चला है।

हालांकि दैनिक भास्कर पर पहले आरोप लगते रहे हैं कि सरकार के हाथ की कठपुतली बन गया है ये अखबार, और इसकी वजह से उसकी रीडरशिप पर भी खासा फर्क पड़ता दिखाई दिया तो भास्कर ने भी सिर उठाना यानि सरकार को घेरना शुरू कर दिया। इससे भास्कर की रीच बढ़ी और उसकी खबरें लोकप्रियता के शिखर पर भी पहुंची। सरकार के हर काम-काज पर सवालिया निशान लगाने से उसे वो लोकप्रियता मिली जो सरकार की गोद में बैठने से नहीं मिल सकती थी।

कोरोना काल आया तो भास्कर की खबरों के स्क्रीनशॉट खूब शेयर किये गये। एक सर्वे के मुताबिक सोशल मीडिया पर जिन खबरों के स्क्रीनशॉट ज्यादा देखे गये उनमें भास्कर नम्बर वन पर था। कोई शक और शुबहा की गुंजाइश नहीं थी कि सरकार को कटघरे में खड़ा करने से पाठकों में इजाफा होता है।

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पर कोरोना काल में सरकार की कदम कदम पर छीछालेदर से सरकार भी चौकन्ना हुई और जिनकी वजह से उसको बदनामी का सामना करना पड़ रहा है, उन पर शिकंजा कसने की तैयारी शुरू हुई। यहां कहना गलत न होगा कि एक मीडिया की आवाज को इस प्रकार दबाना न्यायसंगत तो हरगिज नहीं कहा जा सकता। ताजे-ताजे कई घटनाक्रम हैं जिन पर सरकार चारों ओर से घिरी हुई है, लम्बे समय से चल रहा किसानों का आंदोलन हो, राफेल मुद्दा हो या पेगासस प्रोजेक्ट, विपक्ष आक्रमण पर आक्रमण करता जा रहा है, और जिन्हें मोदी विरोधी मीडिया का तमगा हासिल है, उनकी हेडलाइन ही सरकार की नाकामी को लेकर बनती है।

भास्कर ने तो पेगासस मुद्दे पर मोदी शाह की जोड़ी को गुजरात जासूसी कांड की याद दिला दी, लिख दिया, पहले गुजरात अब केन्द्र। बस सरकार भड़क गयी। उधर लगातार विपक्षी आक्रमण से संसद ठप्प है, तो फिर एक और आक्रमण के लिए मोदी सरकार ने ये पंगा क्यों लिया, ये समझ से परे है।

लेकिन राजनीतिक हलकों में एक बात दबी-दबी ही सही पर खूब प्रसारित है कि नरेन्द्र मोदी उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकते, जिसकी कोई कमजोरी ही नहीं है। भास्कर एक बड़ा व्यापारिक घराना है, निश्चित रूप से उसकी भी बहुत सी कमजोरियां होंगी, जिन पर सरकार टेढ़ी हो रही है, इसलिए अब भास्कर को सीधा तो होना ही पड़ेगा। हालांकि भास्कर के अधिकारी कहते हैं कि हमने सच दिखाया, और इसे दिखाते रहेंगे।

इसी जद्दोजहद में मीडिया को भी एकजुट होकर सरकार के इस आक्रमण को विफल करना होगा, वरना अगला नम्बर किसी का भी हो सकता है। अब कल का इंतजार है, भास्कर का कल का अंक बतायेगा कि भास्कर अभी भी टेढ़ा है या सरकार की धमकी से सीधा हो गया है। तब तक इंतजार करना होगा...

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