खत्री पहाड़ : नंदबाबा की बेटी ने इस पर्वत को दिया था कोढी होने का श्राप

केन नदी किनारे बसे शेरपुर के खत्री पहाड़ में विराजमान मां विंध्यवासिनी देश के प्रमुख 108 शक्ति पीठों में से एक है, जिस पर्वत पर मां का स्थान है..

खत्री पहाड़  : नंदबाबा की बेटी ने इस पर्वत को दिया था कोढी होने का श्राप
खत्री पहाड़, बांदा

बुन्देलखण्ड के जनपद बांदा में शेरपुर सेवड़ा गांव में स्थित सफेद रंग का पहाड, वही पहाड़ है जिसको नंदबाबा की बेटी ने तब कोढ़ी होने का श्राप दिया था जब पहाड़ ने इस देवी रुपी कन्या का भार सहन करने से इंकार कर दिया था। इसी पहाड़ में प्रसिद्ध विंध्यवासिनी मंदिर है जहां हर साल नवरात्रि में लाखों भक्तों का तांता लगता है लेकिन इस बार कोरोना के चलते भक्तों को शर्तों के साथ पूजा अनुष्ठान की छूट दी गई है।

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केन नदी किनारे बसे शेरपुर के खत्री पहाड़ में विराजमान मां विंध्यवासिनी देश के प्रमुख 108 शक्ति पीठों में से एक है। जिस पर्वत पर मां का स्थान है उसका पत्थर सफेद रंग का है। कहते हैं कि देवी कन्या के श्राप से ही इस पर्वत का पत्थर सफेद रंग का हो गया और तभी से पर्वत का नाम खत्री पहाड़ पड़ गया। साल में दो बार नवरात्र पर्व में मां के दरबार में मेला लगता है। देश के कोने-कोने से श्रद्धालु शक्तिपीठ में शीश झुकाकर अपनी मन्नतें मांगते हैं। मां सभी की मुरादें पूरी करती हैं।

  • कोरोना के कारण इस बार नवरात्रि में नहीं लगेगा मेला

श्राप के कारण पत्थर सफेद

नवरात्र पर्व में शक्ति पीठ विंध्यवासिनी में नौ दिनों तक मेला लगता है। ऐसी मान्यता है कि राजा कंस, कृष्ण के बदले देवी कन्या को एक चट्टान पर पटकने लगा तो कन्या कंस के हाथ से छूटकर यह भविष्यवाणी करते हुए आसमान में ओझल हो गयी कि रे दुष्ट कंस तेरा वध करने वाला सुरक्षित है।

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कहा जाता है कि यही देवी कन्या सर्वप्रथम मिर्जापुर के विंध्याचल पर्वत पहुंची लेकिन पर्वत द्वारा देवी कन्या का बोझ सहन करने में असमर्थता प्रकट करने पर विंध्य पर्वत श्रृंखला की इस (खत्री पहाड़) आयीं लेकिन यहां भी पर्वत का वही उत्तर मिलने पर देवी कन्या ने उसे कोढ़ी होने का श्राप दे दिया। तभी से यहां के पत्थर सफेद हो गये हैं और नाम खत्री पहाड़ हो गया। उसी समय देवी कन्या ने आकाशवाणी की थी कि वह प्रत्येक अष्टमी को भक्तों को यहां दर्शन देती रहेंगी तभी से यहां धार्मिक मेला लगता चला आ रहा है।

46 साल पहले बना नया मंदिर

करीब 46 साल पहले मां ने स्वप्न दिया कि पर्वत के नीचे मंदिर बनवाकर उनकी स्थापना करायी जाये और यहां भी मां श्रद्धालुओं को दर्शन देंगी। इसी के बाद पर्वत के नीचे एक विशाल मंदिर का निर्माण कराकर मां विंध्यवासिनी की स्थापना करायी गयी। किवदंती है कि कालांतर में यानी 1974 में ग्राम गिरवां के ब्राह्माण परिवार बद्री प्रसाद दुबे की नातिन शांता को मां विंध्यवासिनी ने स्वप्न में दर्शन दिये और इच्छा प्रकट की पर्वत के नीचे भी उनके मंदिर की स्थापना करायी जाये।

मां वहां भी श्रद्धालुओं को दर्शन देंगी तभी गांव व क्षेत्र के आसपास के लोगों के प्रयास से विशाल मंदिर का निर्माण कराया गया। सिद्धदात्री मां विंध्यवासिनी की प्राणप्रतिष्ठा करायी गयी। तभी से पर्वत के नीचे एक विराट मेला लगने लगा।

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मंदिर के पुजारी गंगााचरन अवस्थी बताते हैं कि नवरात्र की अन्य तिथियों में भक्तों की भीड़ कम होती है, मगर अष्टमी और नवमी तिथि को भक्तों की भीड़ जुटती है। गिरवां निवासी पत्रकार डा.शीलवृत सुकलु कहते है कि कोई अभिलेखीय साक्ष्य तो मौजूद नहीं है, पर लोक मान्यता है कि भार सहन करने में असमर्थता जाहिर करने पर खत्री पहाड़ को मां विंध्यवासिनी ने कोढ़ीृ होने का शाप दिया था, तभी से इस पहाड़ का पत्थर सफेद है और देवी मां के भक्त नवमी तिथि को लाखों की तादाद में हाजिर होकर मां का आशीर्वाद लेते हैं। उन्होंने बताया कि अष्टमी की मध्यरात्रि के बाद देवी की मूर्ति में अनायास चमक आ जाती है जिससे भक्त देवी के आ जाने का कयास लगाते हैं।

भक्त कर सकेंगे दर्शन, नहीं लगेगा मेला

मंदिर प्रबंध समिति के अध्यक्ष पंडित जवाहर लाल इंटर कॉलेज के पूर्व प्रधानाचार्य मुन्ना लाल शास्त्री ने बताया कि कोरोना संक्रमण को देखते हुए प्रशासन की गाइडलाइन का पालन किया जाएगा। इसके लिए हर साल लगने वाला मेला नहीं लगेगा और प्रसिद्धि रामलीला का मंचन भी नहीं किया जाएगा स्थानीय दुकानदार ही मंदिर के आसपास दुकान खोलेंगे और श्रद्धालु देवी जी के दर्शन दूर से कर सकेंगे। जो मंदिर में हर साल अनुष्ठान होते हैं वह होते रहेंगे।

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बताते चलें कि इस प्रसिद्ध मंदिर में हर साल लाखों की तादाद में दर्शनार्थी आते हैं दर्शनार्थियों की संख्या को देखते हुए यहां मेले का आयोजन भी किया जाता था रामलीला भी होती थी लेकिन यह पहली बार होगा जब रामलीला और मेला का आयोजन नहीं होगा

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