मऊ (चित्रकूट)।
एक समय वह भी था जब पानी के लिए कुएं ही एकमात्र सहारा होते थें। जिसके कारण कुंओं की विशेष महत्ता होती थी। पुरुषार्थी धनी सेठ आदि लोग कुएं खोदवा कर पुण्य के भागीदार बनते थे, किंतु हैंडपंपों के कारण शुरू हुई उनकी उपेक्षा की पराकाष्ठा तब हो गई जब जल स्तर बेहद नीचे खिसक जाने से कुएं सूख गए।
गौरतलब है कि विकासखंड मऊ में सैकड़ों कुएं है। यदि कुछ कुंओं को अपवाद स्वरूप छोड़ दिया जाए तो बड़ी संख्या में कुंओं में पानी ही नहीं है। अब पानी न होने के कारण भी लोगों ने आवश्यकता न समझकर इनसे मुख मोड़ लिया। शासन ने भी किसी योजना का हिस्सा नहीं बनाया तो उपेक्षा साल दर साल बढ़ती चली गई।
स्थिति यह है कि मरम्मत तथा रखरखाव के अभाव में कई कुंवे तो ढहने की कगार पर खड़े हैं। आने वाले वक्त में कुओं का पानी तथा कुंवे कहानी बनकर रह जाएं तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। लोगों का मानना है कि वर्षा की कमी व अधिकाधिक संख्या में ट्यूबवेलों का लगना साथ ही घर-घर सबमर्सिबल पंप होने के कारण भी कुंओं का जलस्तर काफी नीचे चला गया है या तो सूख गया है। कई क्षेत्रों में तो हैंडपंप भी जवाब देने लगे हैं। वर्तमान दुर्दशा देखकर बाबा गोस्वामी तुलसीदास की चौपाई याद आती है कि स्वारथ लाग करे सब प्रीती। सुर नर मुनि सब के यह रीति।
वस्तु की तब तक महत्ता है जब तक उससे लाभ होता है। जब लाभ खत्म हो जाता है तो लोग वस्तु की उपेक्षा करने लगते हैं। जब लोगों का कुंओं से मतलब निकल चुका है तो इनकी सुरक्षा व मरम्मत पर गौर करना तो दूर कोई उनकी तरफ देखने वाला भी नहीं है, क्योंकि पनघट में जहां कभी सुबह शाम चहल पहल रहती थी, चूड़ियों की खनखनाहट सुनाई देती थी, महिलाओं के बीच सुख-दुख की चर्चाएं हुआ करती थी वह तो अब बीते जमाने की बात हो गई।
कुंओं के अस्तित्व को बचाने की कवायद नहीं की गई तो आने वाले वक्त में कुंवा सिर्फ किस्से कहानियों में ही होंगे। जनसेवक विष्णु देव त्रिपाठी का इस संबंध में कहना है कि कुंओं के अस्तित्व को बचाने के लिए सरकार को संज्ञान लेना चाहिए और लोगों को भी जागरूक होना चाहिए।
नगर पंचायत में है कई ऐतिहासिक कुंएं
मऊ। नगर पंचायत में लगभग दो दर्जन कुंवे हैं। जिनमें दो से तीन कुंएं तो बिल्कुल पूरी तरह जमीदोज हो चुके हैं। एक दर्जन कुंवे खण्डहर मेंतब्दील हो गए। दो चार कुंओ में पानी तो जरूर है लेकिन पानी का उपयोग न होने से वह दूषित हो गया है। साथ ही खाराप भी आ गया है। कुछ कुंएं तो इतने पुराने है जिसके संबंध में उनके निर्मित काल का भी पता नहीं चल पाया है। इनके संरक्षण एवं संवर्द्धन के लिए शासन प्रशासन को ध्यान देना चाहिए।
अपनत्व की भावना के आधार थे कुंआ
मऊ। नगर पंचायत की 78 वर्षीय सुषमा देवी ने पुरानी यादें ताजा करते हुए बताया कि आसपास के गावों से लोग अवागमन के दौरान लोकगीत गाते हुए कुओं से पानी निकालते थे। मोहल्ले की महिलाएं भोर होते ही पानी ले जाती थी। इससे आपस के लोगों के समाचार भी मिलते रहते थे। जिससे अपनत्व की भावना बनी रहती थी