फाइलेरिया के इलाज में मंडल की इकलौती नाइट क्लीनिक बनी मील का पत्थर

फाइलेरिया रोग किसी अभिशाप से कम नहीं है। समय पर इसकी पहचान ही इससे छुटकारा दिला सकती है। फाइलेरिया मरीज की पहचान..

फाइलेरिया के इलाज में मंडल की इकलौती नाइट क्लीनिक बनी मील का पत्थर

फाइलेरिया रोग किसी अभिशाप से कम नहीं है। समय पर इसकी पहचान ही इससे छुटकारा दिला सकती है। फाइलेरिया मरीज की पहचान की राह में मंडल की इकलौती फाइलेरिया ‘क्लीनिक’ मील का पत्थर बन गई है। मंडल ही नहीं बल्कि पड़ोसी मध्य प्रदेश के जनपदों के भी लोग जांच करवा रहे है। इस साल अब तक 2780 लोगों ने यहां आकर नमूने दिए। इनमें 15 लोगों में माइक्रो फाइलेरिया के लक्षण मिले हैं। जबकि 46 फाइलेरिया रोगी चिन्हित हुए। इनका इलाज चल रहा है। 

फाइलेरिया उन्मूलन के लिए सरकार समय-समय पर कार्यक्रम चला रही है। इसमें टीमें गांवों सर्वे व जांच कर मरीजों की तलाश करती हैं। संभावित रोगी मिलने पर उनका उपचार किया जाता है। लेकिन फाइलेरिया की जांच में मंडल में मुख्य चिकित्साधिकारी कार्यालय परिसर में स्थापित नाइट क्लीनिक सबसे अहम भूमिका निभा रही है। यहां बांदा के अलावा चित्रकूट, हमीरपुर व महोबा जनपदों सहित मध्य प्रदेश की सीमा से सटे के पन्ना, छतरपुर व सतना जिलों के गांवों के लोग आ रहे हैं। रात में उनके नमूने लेकर जांच की जाती है। 

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जिला मलेरिया अधिकारी पूजा अहिरवार बताती हैं कि जनपद में फाइलेरिया रोगियों की संख्या पिछले तीन सालो में घटी है। उन्होंने बताया कि वर्ष 2019 में 84 फाइलेरिया मरीज मिले थे। लेकिन वर्ष 2020 में इनकी संख्या घटकर 64 हो गई। इस साल 2021 में नवंबर माह तक मात्र 46 फाइलेरिया मरीज ही मिले हैं। यहां नाइट क्लीनिक होने से जांच आसानी से हो रही है। इससे फाइलेरिया को बढ़ने से रोकने में काफी हद तक क्लीनिक मुफीद साबित हुई है। 

जिला मलेरिया अधिकारी पूजा अहिरवार ने बताया कि फाइलेरिया के मरीज को सामान्य पानी से नहाना चाहिए। बिस्तर को पैर की तरफ छह इंच ऊंचा रखना चाहिए। पैर को रगड़ कर साफ करने से परहेज करना चाहिए। पैरों को बराबर रख कर आरामदेह मुद्रा में बैठना चाहिए। पट्टे वाला ढीला चप्पल पहनने के साथ सूजन वाली जगह को हमेशा चोट से बचाना चाहिए।

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