खनिज उद्योगः नियमों की अनदेखी पड़ती भारी, मजा करें दुराचारी, पिसती जनता प्यारी 

कबरई महोबा जी हां हम बात कर रहे हैं बुंदेलखंड की एकमात्र उद्योग नगरी कबरई की ,जो कि महोबा जिला...

खनिज उद्योगः नियमों की अनदेखी पड़ती भारी, मजा करें दुराचारी, पिसती जनता प्यारी 

 कबरई महोबा जी हां हम बात कर रहे हैं बुंदेलखंड की एकमात्र उद्योग नगरी कबरई की ,जो कि महोबा जिला मुख्यालय में मौजूद है।, जहां खनन मुख्य व्यवसाय के रूप में दिखाई देता है, कबरई जहां से एक बड़ा राजस्व प्रदेश सरकार को लगातार प्राप्त होता रहता है। जहां है सैकड़ों पहाड़ और क्रेशर जिसके माध्यम से प्रदेश का एक बड़ा तबका लगातार प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष के रूप में लाभ प्राप्त करता है। इसी उद्योग नगरी में जहां एक समय  चार सौ से पाँच सौ क्रेशर संचालित थे। अभी जिनकी संख्या में ज्यादा कुछ कमी नहीं आई है।

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 खनन नगर में प्रति क्रेशर यदि देखा जाए तो एक सैकड़ा के लगभग मजदूर व कामगार लगातार दिन-रात काम करते दिखाई देते हैं। सैकड़ों गांव इसी उद्योग नगरी की जद में आते हैं। वहीं मजदूरों के लिए ग्राम निवासियों के लिए बहुत सी नियमावली कागजों में लगातार उपलब्ध कराई जाती है। लेकिन उनके मूर्त रूप में आने जमीन पर काम करने के प्रयास लगभग शून्य के बराबर से लगते हैं। न तो कामगारों का कोई पंजीकरण ना उन की बेहतरी के कोई प्रयास कोई करता या होता दिखाई देता है। कुछ प्रयास यदि शासन और प्रशासन के स्तर पर शुरू भी किए जाते हैं तो वह भी कहीं न कहीं बीच रास्ते में ही दम तोड़ देते हैं। बिल्कुल उन कामगारों उन मजदूरों की तरह जो लगातार दिन-रात काम कर अपने मालिकों को एक बड़ी रकम उनके ऐसो आराम के लिए उपलब्ध कराते हैं।

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 ताजा मामला अभी दो मजदूरों की पहाड़ पर काम के दौरान ब्लास्टिंग में मौत का भी है। यह कोई नया मामला नहीं इस तरीके की घटनाएं यहां आम बात है। जहां जिंदगी और मौत का कोई ठिकाना नहीं। इसके पहले भी एक बड़ा मामला प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित हुआ था। जिसमें महोबा जिले के पूर्व पुलिस अधीक्षक मणिलाल पाटीदार उनके अधीनस्थों में लगभग आधा दर्जन कारखानों पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा और पाटीदार निलंबित हुए फरार हुए वह कितने दोषी थे या दोषी हैं  यह न्यायिक जांच का विषय ह।ै लेकिन इस उद्योग नगरी में पर्यावरण, खनन  और विद्युत को बड़ा राजस्व मिलने के बाबजूद कामगारों की बेहतरी ग्रामीणों की तरक्की का कोई प्रयास धरातल पर नहीं दिखाई देते हैं।

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 इतने बड़े उद्योग नगरी के बावजूद बुंदेलखंड से प्रतिभा पलायन लगातार होता रहता है लोग यहां से निकल कर बड़े शहरों की तरफ रुख करते हैं जीवन यापन की तलाश मे, जहां होता है उनका शोषण ज्यादा पोषण कम यदि उन्हें अपने ही क्षेत्र में व्यवस्थित ढंग से काम करने में सुविधा मिले तो वह क्यों इधर-उधर का रुख करें। लेकिन यह बातें कहीं न कहीं सब बेकार है क्योंकि जनता लाचार है मजदूर लाचार हैं उनके परिवार आसपास की उद्योग नगरी के कारण उससे फैले प्रदूषण के कारण बीमारी से बचने की खातिर इन क्षेत्रों में अपने आप को सुरक्षित ही नहीं महसूस करता। जहां यह पत्थर का विषय हो रहा है। चाहे वह पहाड़ हो चाहे वह क्रेशर हो चाहे वह खनन हो प्रकृति का दोहन निरन्तर जारी है। क्योंकि अपना पार्टनर जो एक पूर्व अधिकारी है ऐसी ही बातें यहां  कैमरे के पीछे कहीं न कहीं सुनी जा सकती हैं।

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 सूत्रों से जानकारी के अनुसार चित्रकूट मंडल में यदि कोई भी बड़ा अधिकारी कर्मचारी पदस्थ हुआ तो उसने अपने कार्यकाल में रहते हुए या मंडल से जाते हुये कहीं ना कहीं किसी न किसी रूप में अपनी भागीदारी इस व्यवसाय में सुनिश्चित की है । क्योंकि गुलाबी कागज किसको बुरा लगता है और यह परंपरा आज भी जारी है। इस उद्योग नगरी में कायम है, कुछ ऐसे कारखास, कुछ  वर्तमान एवं पूर्व लेखन कार भी जो अपने फायदे को देखते हुए किसी न किसी तरह अपने आपको भी इस व्यवसाय में खपाने की जुगत में लगे रहते हैं। कुछ को एजेंट कुछ को दलाल कुछ को मैनेजमेंट गुरु कभी तमगा मिला हुआ है ।लेकिन जिस को सही मामले में आर्थिक मजबूती मिलना चाहिए मजदूर वह ग्रामीण जनता आज भी अपनी बदहाली  रोना रो रही है, आखिर कब तक ।

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