हमारे गौरवः धर्मध्वजा फहराते चित्रकूट के अखाडे

हमारे गौरवः धर्मध्वजा फहराते चित्रकूट के अखाडे

अखाड़े का तात्पर्य उस स्थान से होता है जहां पर मल्ल युद्व का प्रशिक्षण दिया जाता है या मल्ल युद्व किया जाता है। शारीरिक सौष्ठव के मल्ल युद्व का प्रचलन वैदिक संस्कृति में पुरातन काल से चला आ रहा है। धार्मिक कथानकों की इस भूमि पर अखाड़ों को अस्तित्व में लाने का श्रेय शैव संप्रदाय के प्रवर्तक शंकराचार्य जी को है। उन्होंने देश के चार कोनों में पीठों की को चार मठों का रूप दिया। कालांतर में शैव, शाक्त व वैष्णव संप्रदाय के साधुओं ने अपने अलग -अलग अखाडों को बनाकर मान्यता दिलाने का काम किया। वैसे तो चित्रकूट में तीनों धाराओं का अदभुत संगम है। शैैव, शाक्त व वैष्णव परंपरा यहां पर जन-जन में रची बसी है। कहीं कोई विरोधाभाष नहीं है। लेकिन पुरातन काल से यहां पर शैव व शाक्त की जगह वैष्णव अखाड़ों का अधिपत्य रहा। देश का इकलौता स्थान चित्रकूट ही है जहां पर वैष्णवों के सभी अखाड़े एक ही स्थान पर मौजूद हैं।

  • अखाड़ों की स्थापना लगभग 800 वर्ष पूर्व रामानंदाचार्य जी महराज के शिष्य श्रीबाल आनंद आचार्य जी महाराज के द्वारा हुई। यह सभी श्री पंच रामानंदी वैष्णव अखाड़े बनाए गए। सवाल खड़ा होता है कि आखिर अखाड़ों की जश्रत क्यों पड़ी। इसका जवाब है कि लगभग 800 वर्ष पूर्व भारतवर्ष में मुगल शासन था। मुगल आक्रांताओं ने वैदिक संस्कृति नष्ट करने व अपने वैदिक मतावलंबियों को जबरन मुस्लिम बनाने का कुचक्र रचा। जिससे सनातन धर्म के समाप्त होने का खतरा मंडरा रहा था।

उस कालखंड के मुगल शासक मोहम्मद तुगलक हिंदुओं को जबरदस्ती बंधक बनाकर जनेऊ, चोटी, चंदन मिटावा कर धर्म परिवर्तन करा देता था। प्रमुख धर्म स्थलों को तोड़कर मस्जिद बनाने व मूर्तियों को खंडित करने का काम भी बहुत तेजी से कर रहा था। अपनी संस्कृति धर्म मर्यादा को छिन्न-भिन्न हालत में देखकर आदि गुरु रामानंदाचार्य जी महराज के परम प्रिय क्रांतिकारी शिष्य पूज्य श्री बालआनंद आचार्य जी ने यह प्रण किया कि हम अपनी संस्कृति की रक्षा करेंगे। नागा वैरागी साधुओं की सेना सेना तैयार की गई। जिसमें साधुओं को शस्त्रों का प्रशिक्षण दिया गया। कालांतर में इस सेना ने मुगलों से आक्रमण किया और धर्म की रक्षा के लिए उद्त हुए। उस काल में स्थापित किए गए सभी अखाड़ों का अस्तित्व आज भी चित्रकूट में है। देश का इकलौता चित्रकूट ही ऐसा स्थान है कि जहां पर सातो अखाड़े अपने पूरे वैभव के साथ मौजूद हैं।

चित्रकूट में स्थित प्रमुख सातों अखाड़े व उनके महंत

    दिगंबर अखाड़ा श्री महंत दिव्य जीवनदास जी महाराज

    निर्मोही अखाड़ा श्री महंत ओंकार दास जी महाराज

    निर्वाणी अखाड़ा श्री महंत सत्य प्रकाश जी महाराज

    संतोषी अखाड़ा श्री महंत रामजी दास महाराज

    महानिर्वाणी अखाड़ा श्री महंत आदित्य नारायण दास जी महाराज

    खाकी अखाड़ा श्री अनूप दास जी महाराज

    निरालंबी अखाड़ा श्री महंत रामरतन दास जी महाराज

अखाड़ों में प्रवेश की प्रक्रिया

रामानंदी अखाड़ों में नागा विरक्त साधु संतों का प्रवेश कराया जाता है। उन्हें श्रीहनुमान जी महाराज के सामने प्रतिज्ञा दिलाई जाती है कि वह आजीवन अपना घर-परिवार छोड़कर धर्म संस्कृति शिक्षा की रक्षा करने के लिए समर्पित रहेगा।

प्रमुख शिक्षा

शास्त्रों की शिक्षा, वैदिक पूजा पद्वति व वैदिक अनुष्ठान पूजन विधियों के साथ ही राष्ट्र सेवा, राष्ट्र रक्षा, धर्म रक्षा, धर्मांतरण रोकना, धर्म का विस्तार, युद्ध की नीति तय करना, शास्त्र शिक्षा, शस्त्र शिक्षा, घुड़सवारी, मल्ल युद्ध व युद्ध अभ्यास आदि की प्रमुख शिक्षाएं प्रदान की जाती हैं। वास्तव में अखाड़ा शब्द अपभ्रंश है अखंड, यानि कभी नष्ट न होने वाला।

अंग्रेजों से युद्व में चित्रकूट के संतों ने भी दी थी कुर्बानी

प्लासी के युद्व के बाद से ही देश में अंग्रेजों के खिलाफ माहौल बनाने का काम संतों ने ही किया था। पहला युद्व 1757 में अंग्रेजों व बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला क मध्य हुआ। यह युद्व केवल 23 घंटे चला और 23 सैनिक मारे गए। मीर जाफर की गद्दारी का फायदा क्लाइव लायड को मिला और ईस्ट इंडिया कंपनी की नींव देश में पड़ गई। पांच सालों के भीतर ही देश में अंग्रेाजों के दमनकारी चक्र के कारण हाहाकार मच गया। धर्म की रक्षा के लिए सबसे पहले सन्यासी ही आगे आए। 1763 से 1773 तक दस साल तक युद्व हुआ। मोहन गिरि व भवानी पाठक ने पूरे देश के सन्यासियों को एकत्र किया। वह बंगाल से चित्रकूट भी आए।यहां पर भी भारी विद्रोह हुआ। यहां के संतों ने अंग्रेज सेना के साथ शस्त्र युद्व किया। हनुमान धारा के पहाड़ पर हुए युद्व में हजारों संतों ने कुर्बानी दी।

- महन्त मदन गोपाल दास

(लेखक चित्रकूट में कामतानाथ प्रमुख द्वार के महन्त हैं)

 

 

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