पुनाहुर गांव: जहां घरों में ताले और गलियों में सन्नाटा है, गांव के 1350 लोग कर गए पलायन

उत्तर प्रदेश के जनपद बांदा में बिसंडा ब्लाक का पुनाहुर ऐसा अभागा गांव है, जिसका कोई पुरसाहाल नहीं है। गांव में पलायन का...

पुनाहुर गांव: जहां घरों में ताले और गलियों में सन्नाटा है, गांव के 1350 लोग कर गए पलायन

उत्तर प्रदेश के जनपद बांदा में बिसंडा ब्लाक का पुनाहुर ऐसा अभागा गांव है, जिसका कोई पुरसाहाल नहीं है। गांव में पलायन का ऐसा मंजर है कि घरों में ताले और गलियों में सन्नाटा है। बाहरी ठेकेदार 10000 रुपए प्रति व्यक्ति की कीमत चुका कर अपने-अपने ट्रकों में लोगों को भरकर राजस्थान, हरियाणा, पंजाब और इलाहाबाद के ईट भट्टों में ले गए हैं।

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punahur village

27 सौ की आबादी वाली दलित बस्ती से 1350 लोग पलायन कर गए हैं। इस दलित बस्ती में रहने वाले अधिकतर परिवार भूमिहीन हैं। गांव में रोजगार के अन्य कोई अवसर नहीं है। मनरेगा के काम बंद पड़े हैं ऐसे में लोगों के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है। रोजगार की तलाश में गांव से शिवशरण, राजेश, कमलेश, देवा, चंदू, अशोक, सुशील सुरेश, ओम, श्रवन, सुनील, रामनरेश, नवल, राजेश, छोटू सहित एक सैकड़ा परिवारों से 1350 लोग पलायन कर गए हैं। पलायन करने वाले इन सभी परिवारों के सदस्यों को बाहरी ठेकेदार टक लेकर आते हैं तथा 10,000 रुपए प्रति व्यक्ति की दर से एडवांस पैसा देकर अपने ट्रकों में भरकर ले जाते हैं।

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परिवार सहित पलायन से एक से आठवीं तक के 200 बच्चे  ड्रॉपआउट हो गए हैं। यह सभी बच्चे भी अपने मां-बाप के साथ पलायन कर गए हैं। गांव में बूढ़ी महिलाएं बची हैं जिन्हें चूल्हा जलाना मुश्किल हो रहा है। गांव की 80 वर्षीय चिरौंजी का बेटा भी अपनी बूढ़ी मां को घर में अकेला छोड़कर चला गया है। एक वर्ष पहले चिरौंजी का राशन कार्ड भी कट गया है। वह दिन भर घर में देहरी में अकेले बैठे परदेस गए बेटे के कमाई की आस लगाए टुकुर-टुकुर निहारती रहती है। 25 वर्षीय अजय कुछ दिन पहले ही रोजगार की तलाश में नोएडा गया था। कई दिन तक काम खोजता रहा, जब काम नहीं मिला तो उसने वहीं पर आत्महत्या कर ली।

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14 वर्षीय अमित बताता हैं कि हम 6 भाई-बहन हैं, सभी पिताजी के साथ पथेड़ करने जाते हैं। इसलिए हम सभी भाई बहनों में कोई भी स्कूल नहीं जाता है।
 इस बारे में विद्या धाम समिति के सामाजिक कार्यकर्ता राजा भैया बताते हैं कि  कोरोना के बाद इस क्षेत्र में रोजगार का बहुत बड़ा संकट खड़ा हो गया है। इसलिए भारी संख्या में लोग पलायन कर रहे हैं। पलायन करने वाले  यही लोग ईंट भट्ठों में बंधक हो जाते हैं। पलायन रोकने के दिशा में भी ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले समय में गांव के गांव खाली मिलेंगे।

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