एमडीआर टीबी को मात देकर रामलखन बन गए ‘टीबी चैंपियन’
‘कुछ दिनों से सीने में दर्द और खांसी थी। इसे मामूली समझ कर नजरअंदाज कर दिया। कई प्राइवेट और आयुर्वेदिक प्रतिष्ठानों पर..
![एमडीआर टीबी को मात देकर रामलखन बन गए ‘टीबी चैंपियन’](https://www.bundelkhandnews.com/uploads/images/2021/02/image_750x_6034eddea6576.jpg)
कोरोना काल में पुत्र व पुत्री भी हुए टीबी पाजिटिव
‘कुछ दिनों से सीने में दर्द और खांसी थी। इसे मामूली समझ कर नजरअंदाज कर दिया। कई प्राइवेट और आयुर्वेदिक प्रतिष्ठानों पर इलाज करवाया। लेकिन गरीबी के चलते तीन-चार महीनों से ज्यादा इलाज नहीं करवा सके। सरकारी अस्पताल में जांच टीबी की पुष्टि हुई। घर में बेटे व बेटी का भी नमूना लिया गया। इनमें भी टीबी के लक्षण पाए गए। लेकिन नियमित इलाज और मार्गदर्शन के साथ जिंदगी ने फिर करवट ली’। यह कहना है टीबी रोग को मात दे चुके रामलखन का। अब वह टीबी चैंपियन बनकर लोगों को जागरूक कर रहे हैं।
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शहर के मर्दननाका मोहल्ले के रहने वाले राम लखन यादव पेशे से मजदूर है। लंबे समय से बीमारी परेशान होने की वजह से शरीर में मेहनत मजदूरी करने की ताकत भी नहीं बची। वर्ष 2012 में उन्हों मामूली खांसी की शिकायत हुई। प्राइवेट चिकित्सकों व वैद्यों से इलाज करवाया। लेकिन गरीबी के चलते कहीं भी मुकम्मल इलाज नहीं करा सके। धीरे-धीरे खांसी ने टीबी का रूप ले लिया। टीबी रोगी खोज अभियान के दौरान स्वास्थ्य विभाग की टीम ने इन्हें खोजा और जांच की गई।
एमडीआर रिपोर्ट पाजिटिव आने के बाद घर में बच्चों के भी सैंपल लिए गए। बेटे अमित व बेटी ज्योति की रिपोर्ट पाजिटिव आई। बच्चों में टीबी की बीमारी मिलने पर वह काफी परेशान हो गए। किसी काम में भी दिल नहीं लग रहा था, लेकिन स्वास्थ्य विभाग में विशेषज्ञों की राय और छह महीने नियमित इलाज से बच्चे पूरी तरह ठीक हो गए। उन्होंने भी दवा को लगतार जारी रखा और दो साल में टीबी को मात दे दी। अब वह पूरी तरह इस रोग से मुक्त हो चुका है।
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स्वास्थ्य विभाग द्वारा उसे टीबी चैंपियन बनाया गया है। वह लोगों को इस रोग के लक्षण व इलाज के लिए प्रेरित कर रहे हैं। रामलखन ने कहा कि टीबी लाइलाज बीमारी नहीं हैं। समय पर सही उपचार से यह पूरी तरह ठीक हो सकता है। कोई दिक्कत होने पर उसके नजरअंदाज बिल्कुल न करें। जिला क्षयरोग अधिकरी डा.जीआर रत्मेले ने बताया कि रामलखन आसपास के गांवों में टीबी रोग के प्रति लोगों को जागरूक करने में पूरा सहयोग कर रहे हैं।
सामान्य टीबी का बिगड़ा रूप है एमडीआर
एमडीआर (मल्टी ड्रग रेजिस्टेंस) सामान्य टीबी का बिगड़ा हुआ रूप है, जिसमें टीबी की सामान्य दवा असर करना बंद कर देती है। टीबी का यह स्तर मरीज द्वारा पूरा इलाज लेना या दवा लेने में लापरवाही करना और परहेज नहीं करना रहता है। जिला कार्यक्रम समन्वयक प्रदीप वर्मा ने बताया कि जनपद में एमडीआर टीबी के 275 मरीज हैं। एमडीआर मरीज को ठीक होने में दो साल का समय लग जाता है।
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