कानपुर जाने से मिली निजात, टेढ़े पैर वाले बच्चों का चित्रकूट मंडल में इलाज संभव

जन्मजात टेढ़े-मेढ़े पैर वाले बच्चों के इलाज के लिए अब जिला अस्पताल में ही इलाज की सुविधा उपलब्ध है। राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम..

Aug 10, 2021 - 08:31
Aug 10, 2021 - 08:37
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कानपुर जाने से मिली निजात, टेढ़े पैर वाले बच्चों का चित्रकूट मंडल में इलाज संभव
विकलांग बच्चों ( children with disabilities )

जन्मजात टेढ़े-मेढ़े पैर वाले बच्चों के इलाज के लिए अब जिला अस्पताल में ही इलाज की सुविधा उपलब्ध है। राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम (आरकेएसके) के तहत यहां के डाक्टर्स की टीम अब तक 33 बच्चों के पैरों को निःशुल्क ठीक कर चुकी है।

 

कुछ बच्चों के पैरों के पंजे पैदाइशी टेढ़े होते हैं और उम्र बढ़ने के साथ उनकी बीमारी बढ़ती जाती है। ‘क्लब फुट’ नामक यह रोग यदि बढ़ जाए तो बच्चा ठीक से चल नहीं पाता। ऐसे बच्चों को इलाज के लिए कानपुर या अन्य महानगर जाना पड़ता था। लेकिन अब मंडल मुख्यालय के जिला अस्पताल में ऐसे बच्चों का इलाज किया जा रहा है। बांदा के अलावा चित्रकूट, हमीरपुर व महोबा जनपद के लोगों को इलाज की यह सुविधा आसानी से मिल सकेगी। 

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कार्यक्रम के नोडल अधिकारी डा. आरएन प्रसाद का कहना है कि जन्मजात टेढ़े पैरों वाले बच्चों का इलाज जन्म के बाद जितनी जल्दी हो सके शुरू कर देना चाहिए। तीन सप्ताह के भीतर यदि इलाज शुरू हो जाए तो अच्छा रहता है। इसे ‘गोल्डन पीरियड’ कहते हैं क्योंकि मां के गर्भ से हॉर्मोन बच्चे के रक्त में जाता है और तीन सप्ताह तक रहता है। 

विकलांग बच्चों ( children with disabilities )

डीईआईसी मैनेजर वीरेंद्र प्रताप ने बताया कि जन्म के शुरुआती दस दिनों में प्लास्टर नहीं लगाया जाता क्योंकि तब नवजात शिशु की त्वचा प्लास्टर सहन करने के लिए अपरिपक्व होती है। छह से आठ बार प्लास्टर लगाने के बाद टेढ़े पंजे ठीक हो जाते हैं। प्रत्येक प्लास्टर दो-तीन सप्ताह तक रहना चाहिए।

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यदि प्लास्टर लगाने के बाद टेढ़े पंजे सामान्य हो जाते हैं तो बच्चे के पैर में ‘स्प्लिंट’ पहना दिया जाता है। जब चलने की उम्र आती है तब विशेष प्रकार के जूते पहना दिए जाते हैं। यह जूते चार-पांच साल तक पहनने चाहिए। सहयोगी संस्था मिराइकल फिट इंडिया के आशीष मिश्रा के मुताबिक 99 फीसद बच्चे इस इलाज से पूरी तरह ठीक हो जाते हैं।

इस दौरान डॉक्टर द्वारा दी गई सलाह को अवश्य मानना चाहिए वरना बच्चों में दोबारा यह बीमारी होने की आशंका रहती है। इसके बाद सर्जरी ही एकमात्र विकल्प बचता है। उन्होंने बताया कि जिला अस्पताल में सप्ताह में एक दिन यानी बुधवार को डा. विकास दीप बलहेटिया द्वारा ऐसे बच्चों का इलाज किया जा रहा है। इससे संबंधित सलाह या जानकारी के लिए उनके मोबाइल नंबर 988925580 पर कॉल कर जानकारी ली जा सकती है।

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