श्रीराम जन्मभूमि हिंदुओं को देने पर अंग्रेजों ने चली चाल

1740 से 1814 तक अवध का नवाब सआदतअली था जिसके समय में अयोध्या में पांच बार युद्ध हुए...

श्रीराम जन्मभूमि हिंदुओं को देने पर अंग्रेजों ने चली चाल

लखनऊ। 1740 से 1814 तक अवध का नवाब सआदतअली था जिसके समय में अयोध्या में पांच बार युद्ध हुए। इन युद्धों का सामना अमेठी के राजा गुरुदत्त सिंह ने जमकर किया। युद्ध से नवाब इतना तंग आ गया कि उसने श्रीराम जन्मभूमि पर मुसलमानों के साथ-साथ हिंदुओं को भी पूजन करने की अनुमति दे दी। 1814 से 1836 तक नवाब नसीरुद्दीन हैदर के का शासन रहा जब तीन बार हिंदुओं ने जन्मभूमि मुक्ति के लिए संघर्ष किया। इस युद्ध में मकरही के राजा ने मुकाबला किया जबकि 1847 से 1857 तक नवाब वाजिदअली शाह के समय में दो युद्ध हुए जिसमें बाबा उद्धवदास और भीटी नरेश ने लड़ाई लड़ी।

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नवाब वाजिद अली शाह के वक्त तक देश में अंग्रेजों का शासन अपनी जड़ें जमा चुका था। 1857 के विद्रोह की पृष्ठभूमि बनने लगी थी। अंग्रेजों के उत्पीडऩ के शिकार हिंदू जितने थे उतने ही मुसलमान भी थे। ऐसे वक्त में गजब का हिंदू मुस्लिम एकता देखा गया था। नवाब वाजिदअली शाह ने तीन सदस्यीय कमेटी का गठन कर दिया जो यह पता लगाएगी कि विवादित ढांचे के पहले वहां कोई मंदिर था या नहीं था। कमेटी ने जांच पड़ताल के बाद अपनी रिर्पोट नवाब को सौंप दिया जिसमें कहा गया कि वहां पहले कोई मस्जिद नहीं थी।

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जन्मभूमि हिंदुओं को देने पर अंग्रेजों ने चली चाल

दूसरी तरफ 1857 के विद्रोह की तैयारी में कमल और रोटी का संदेश गांव-गांव दिया जाने लगा था। अंग्रेजी राज के खिलाफ विद्र्रोह की चिंगारी सुलगने लगी थी। मेरठ में मंगल पाण्डेय ने विद्रोह कर दिया। विद्रोह की आग देखते ही देखते देश भर में फैल गई। अंग्रेजों ने भांप लिया कि भारतीयों की एकता उनके राज के लिए खतरा है। दूसरी तरफ एक ऐसा भी वक्त आया जब बाबा रामचरण दास और अमीर अली की अगुवाई में मुसलमानों ने श्रीरामजन्मभूमि हिंदुओं को सौंपने का निर्णय कर लिया लेकिन अंग्रेज इस मुद्दे के हल हो जाने पर अपने राज के लिए खतरा देखते थे। उन्होंने बाबा रामचरण दास और अमीर अली को फांसी पर लटका दिया।

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अयोध्या का इतिहास लेखक लाला सीताराम लिखते हैं कि-

समर अमेठी के सरोष गुरुदत्त सिंह,
सादत की सेना समसेरन ते भानी है।
भनत कविंद काली हुलसी असीसन को,
सीसन को ईस की जमाति सरसानी है।
तहां एक जोगिनी सुभट खोपरी लै तामै,
सोनित पियत ताकी उपमा बखानी है।
प्यालौ लै चिनी को छकी जोवन तरंग मानो,
रंग हेतु पीवति मजीठ मुगलानी है।

हांलाकि इतिहास में गुरुदत्त सिंह के युद्ध को विस्तार नहीं दिया गया है, और कई जगह इतिहासकारों ने इसे असत्य भी माना है। लेकिन इस घनाक्षरी (कविता) से साबित होता है कि किस प्रकार गुरुदत्त सिंह ने बुरहानुल मुल्क की सेना का सामना किया था।

हम इश्क के बंदे हैं...

हनुमान गढ़ी वाले दंगे के बाद मुसलमानों ने वाजिद अली शाह को चिट्ठी भेजी और सारा वृतांत लिख दिया। यह भी लिखा कि हिंदुओं ने मस्जिद गिरा दी है। नवाब का जबाव आया कि-

हम इश्क के बंदे हैं, मजहब से नहीं वाकिफ।
गर काबा हुआ तो क्या, बुतखाना हुआ तो क्या।।

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इसके बाद ही नवाब वाजिद अली शाह ने तीन सदस्यीय कमेटी का गठन किया था। जिसे अपनी रिर्पोट में बताया कि वहां पर कोई मस्जिद नहीं थी, यह खबर पूरी तरह झूठी है। हांलाकि मुसलमान संतुष्ट नहीं हुए और उन्होंने अमेठी के मौलवी अमीरअली को घटना से अवगत कराया। फिर क्या अमीरअली हनुमान गढ़ी पर हमला करने निकल पड़ा।

हिन्दुस्थान समाचार

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