बुंदेलखंड की बदनाम विधा राई ने, इस शख्सियत को दिलाया पद्मश्री सम्मान

सागर बुंदेलखंड का राई लोक नृत्य एक ऐसा लोक नृत्य है, जिसने बुंदेलखंड की संस्कृति को देश और दुनिया में पहचान दिलाई है..

बुंदेलखंड की बदनाम विधा राई ने, इस शख्सियत को दिलाया पद्मश्री सम्मान

सागर बुंदेलखंड का राई लोक नृत्य एक ऐसा लोक नृत्य है, जिसने बुंदेलखंड की संस्कृति को देश और दुनिया में पहचान दिलाई है। लेकिन बुंदेलखंड में ये लोक नृत्य काफी बदनाम है। राई लोक नृत्य को लोग देखना पसंद करते हैं और जहां मौका मिलता है, राई नृत्य का आनंद लेने से नहीं चूकते हैं।

बुंदेलखंड की सभ्रांत समाज में इस नृत्य को सम्मान नहीं मिलता है। सांस्कृतिक मंच पर लोक नृत्य को बढ़-चढ़कर सम्मान दिया जाता है लेकिन सामाजिक स्तर पर इस नृत्य को करने वाली नृत्यांगनाओं को सम्मान जनक दृष्टि से नहीं देखा जाता है। ऐसे ही नृत्य की जीवन पर्यंत सेवा के लिए ढलती उम्र में पंडित रामसहाय पांडे को पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया है।

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सागर के राम सहाय पांडे को सोमवार को राष्ट्रपति भवन में महामहिम रामनाथ कोविंद ने पद्म श्री से सम्मानित किया। 26 जनवरी की पूर्व संध्या पर केंद्र सरकार ने पद्म पुरस्कारों की घोषणा की थी। इसमें केंद्र सरकार ने बुंदेलखंड अंचल को भी सम्मानित किया। केंद्र सरकार ने सागर जिले के कलाकार रामसहाय पांडे को पद्मश्री अवार्ड देने की घोषणा की थी। 94 साल के रामसहाय पांडे बुंदेलखंड की प्रसिद्ध राई नृत्य में पारंगत हैं। वह देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी राई नृत्य कर चुके है उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर राई लोक नृत्य को पहचान दिलाई है। 

राई नृत्य में पारंगत रामसहाए पांडे का जन्म 11 मार्च 1933 को सागर जिले में आने वाले ग्राम मडधार पठा में हुआ था। उनका परिवार बेहद गरीब था। पिता लालजू पांडे गांव के ही मालगुजार के यहां काम करते थे। लेकिन जब पांडे 6 साल के थे तब इनके पिता का निधन हो गया, लिहाजा इनकी माता अपने बच्चों को लेकर कनेरादेव गांव आ गई और अपने मायके में रहने लगी। लेकिन 6 साल बाद ही माता ने भी उनका साथ छोड़ दिया। उनका बचपन मुश्किलों से गुजर रहा था।

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  • मेले में राई नृत्य देखा

एक बार रामसहाए पांडे एक मेले में पहुंचे जहां उन्होंने राई नृत्य देखा। जिसके बाद उन्होंने सोच लिया कि वह भी राई करेंगे। बस फिर क्या था, उन्होंने मृदंग बजाने की प्रैक्टिस शुरू कर दी।

बुंदेलखंड के सामाजिक नजरिए से राई नृत्य ब्राह्राण परिवारों के लिए अच्छा नहीं माना जाता था। लेकिन रामसहाए पांडे अपनी जिद पर अड़े रहे। आखिरकार वह मृदंग बजाना सीख गए। एक बार एक जगह राई नृत्य की प्रतियोगिता रखी गई जिसे रामसहाए पांडे ने जीत लिया। 

  • राई में रामसहाए पांडे का कोई मुकाबला नहीं 

छोटे कद के पांडे जब कमर में मृदंग बांध कर नाचते और पल्टी मारते तो लोग दांतों तले उंगली दवा लेते थे। राई नृत्य में उनका कोई मुकाबला नहीं था। हालांकि 94 साल की बुजुर्ग अवस्था में होने की वजह से रामसहाए पांडे को राई छोड़े बहुत वक्त हो गया है।

लेकिन आज भी बुंदेलखंड अंचल में उनका कोई मुकाबला नहीं है। वह जापान, हंगरी, फ्रांस, मॉरिसस सहित कई बड़े मंचों पर राई नृत्य कर चुके हैं।  रामसहाए पांडे को इससे पहले राज्य स्तर पर कई बार सम्मानित किया जा चुका है। राज्यपाल और मुख्यमंत्री भी उन्हें सम्मानित कर चुके हैं।

  • बुंदेलखंड का प्रसिद्ध नृत्य राई 

राई नृत्य बुंदेलखंड अंचल का एक प्रसिद्ध नृत्य है। यह पूरे साल चलता है, राई नृत्य मे बेड़नियां नाचती हैं और पुरुष मृदंग बजाते हैं। इस नृत्य में पांगे गाई जाती है। मृदंग की थाप पर घुंघरुओं की झंकारती राई और उसके साथ नृत्यरत स्वांग लोगों का जमकर मनोरंजन करते हैं। समूचे बुंदेलखंड अंचल में शादी या अन्य किसी खुशी के समाराहों में राई नृत्य खूब देखने को मिलता है।

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