बुंदेली राजनीति के रण में इस बार इन दिग्गजों की भूमिका नही आ रही नजर

बुन्देलखण्ड के रण महोबा व हमीरपुर का उत्तर प्रदेश की राजनीति में हमेशा एक महत्वपूर्ण स्थान रहा है , जिले के पूर्व नेताओं ने सदैव प्रादेशिक..

बुंदेली राजनीति के रण में इस बार इन दिग्गजों की भूमिका नही आ रही नजर

बुन्देलखण्ड के रण महोबा व हमीरपुर  का उत्तर प्रदेश की राजनीति में हमेशा एक महत्वपूर्ण स्थान रहा है , जिले के पूर्व  नेताओं ने सदैव प्रादेशिक स्तर पर एक पहचान कायम रखी है, जिले की राजनीति के केन्द्र में रहे दर्जनों चेहरे अब या तो  राजनीतिक बियाबान में चले गए हैं या फिर परदे के पीछे से राजनीति की चालें चल किंग मेकर का किरदार निभा रहे हैं। 

हमीरपुर जिले की तहसील रहा महोबा के 1995 में नया जिला बनने के बाद महोबा जिले के हिस्से में दो विधानसभा सीटें महोबा व चरखारी आईं हैं जबकि लोकसभा की सीट आज भी तीन जिलों महोबा , हमीरपुर व बांदा की तिंदवारी विधानसभा में समाहित है। महोबा व हमीरपुर भले जिलों के रूप में विभाजित हो गए हों लेकिन राजनीति के मामले में दोनों जिले आज भी साझा हैं। एवं हमीरपुर जिले के नेताओं का दोनों में दखल रहता है। 

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पूर्व राजनीतिज्ञ गंगाचरण राजपूत यूं तो जालौन जिले के रहने वाले हैं लेकिन  राजनीति की शुरुआत उन्होंने महोबा - हमीरपुर जिले से की। वे पहली बार जनता दल से सांसद चुने गए। गंगाचरण राजपूत महोबा - हमीरपुर की राजनीति का सशक्त चेहरा बनकर उभरे। गंगाचरण राजपूत ने  जनता दल, भाजपा , राष्ट्रीय क्रांति पार्टी , कांग्रेस व बसपा सहित सभी प्रमुख दलों की राजनीति की। वे राज्यसभा सांसद भी रहे।

रुहेलखंड की पीलीभीत सीट से भी सांसद का चुनाव लड़ चुके गंगाचरण राजपूत अब राजनीति के परदे के पीछे के खिलाडी हैं। गंगाचरण राजपूत यूपी के मुख्यमंत्री रहे कल्याण सिंह के बेहद करीबियों में रहे हैं। उन्होंने अपने बेटे ब्रजभूषण राजपूत को अपने उत्तराधिकारी के रूप में महोबा जिले की राजनीति में उतारा है। उनके बेटे ब्रजभूषण राजपूत 2017 में भाजपा के टिकट पर चरखारी सीट से जीत के साथ विधानसभा पहुंच चुके हैं। वे इस बार फिर से चुनाव मैदान में हैं।

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पार्टी ने उन्हें दोबारा टिकट दिया है। गंगाचरण राजपूत सक्रिय राजनीति से भले रिटायर हो गए हों लेकिन वे क्षेत्रीय राजनीति में हमेशा सक्रिय रूप में नजर आते हैं। अशोक सिंह चंदेल हमीरपुर की राजनीति का एक बड़ा चेहरा रहा है। दबंग अशोक सिंह चंदेल हमीरपुर  सीट से विधायक व सांसद रहे। लेकिन सामूहिक हत्याकांड में नामजद होने व बाद में उन्हें सजा हो जाने के बाद वे राजनीति से आउट हो गए हैं।

इस बार काँग्रेस ने उनकी पत्नी राजकुमारी अशोक चंदेल को टिकट दिया है, अशोक चंदेल के दोनों युवा पुत्र अपनी माँ के साथ विधानसभा मैदान में है,  हमीरपुर  के राठ से तीन बार  विधायक रहे चौधरी धूराम बसपा सरकार में मंत्री भी रहे। लेकिन राठ सीट आरक्षित होने के कारण चौधरी धूराम महोबा जिले के कुलपहाड कस्बे में शिफ्ट हो गए। वे महोबा की चरखारी सीट से राजनीति में वापस सफलता पाने के लिए प्रयासरत थे।

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इसके लिए उन्होंने बसपा छोडकर कांग्रेस व चुनाव के ऐन टाइम पर कांग्रेस छोडकर सपा ज्वाइन कर ली। लेकिन सपा से टिकट न मिलने के कारण धूराम चौधरी का राजनीतिक कैरियर भी अब अवसान की ओर है क्योंकि वे उम्र के जिस दौर में हैं उससे उनको निकट भविष्य में टिकट मिलना आसान नहीं होगा। राठ निवासी व हमीरपुर - महोबा की राजनीति का सबसे सशक्त  ब्राह्मण चेहरा रहे राजनारायन बुधौलिया महोबा सीट से विधायक व हमीरपुर - महोबा से सांसद रह चुके हैं।

लेकिन उनके असामयिक निधन से वे दोनों जिलों की राजनीति में एक बडा शून्य छोडकर गए हैं, उनके भाई श्रीनिवास बुधौलिया राठ नगरपालिका चौयरमैन है, और अपने भाई के निधन के बाद क्षेत्रिय राजनीति में पूरी तरह सक्रिय नजर आते हैं , राठ के विधायक रहे डा. रामसिंह के निधन के बाद उनकी  खाली जगह आज भी नहीं भर सकी है।शिवचरण प्रजापति हमीरपुर की राजनीति का एक बडा चेहरा रहा है। वे कई बार विधायक रहे। उनका बेटा डा. मनोज प्रजापति सपा के टिकट पर दो बार चुनाव लड़ चुका है लेकिन दोनों बार हार जाने के बाद सपा ने इस बार मनोज को टिकट नहीं दिया। जिससे नाराज डा. मनोज प्रजापति ने सपा छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया है। भाजपा ने डा. मनोज को हमीरपुर सीट से टिकट भी दे दिया है। अब मनोज भी राजनीति में पिता की तरह उडान भरने को तैयार हैं। 

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अम्बेश कुमारी चरखारी सीट से सपा विधायक रह चुकी हैं। राठ सीट से वे इस बार टिकट की प्रबल दावेदार थीं। लेकिन पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया। अम्बेश कुमारी ने अपने बेटे को महोबा जिले से जिला पंचायत सदस्य बनवाकर उनके लिए राजनीतिक द्वार खोल दिए हैं। महोबा जिला निर्माण के प्रमुख किरदार रहे अरिमर्दन सिंह को भी कई बार महोबा से विधानसभा के लिए नुमाइंदगी करने का मौका मिला। नाना के नाम से जाने जाने वाले अरिमर्दन सिंह का दौर खत्म हो गया है। एमएलसी रहे जयवंत सिंह की राजनीति भी ढलान पर है, उनके पुत्र सागर सिंह ने काँग्रेस से विधानसभा चुनाव में महोबा से दावेदारी पेश की है।

महोबा जिले के छंगा साहू जिन्होंने विधानसभा एवं लोकसभा के बहुत से चुनावों में भागीदारी की जिनके बड़े बेटे  सिद्धगोपाल साहू  ने कबरई चौयरमैन के साथ महोबा से समाजवादी सरकार में विधानसभा चुनाव जीतकर मंत्री पद भी पाया मौजूदा चुनाव में सपा से टिकट न मिलने से मायूस होंगे। लेकिन उनके भाई संजय साहू ने बसपा से टिकट पाकर चुनाव लड़ने की अपनी राजनीतिक विरासत को बरकरार रखने का काम किया है। जालौन जिले के उरई से राजनीति करने महोबा आए कप्तान सिंह राजपूत व उनकी पत्नी उर्मिला राजपूत दोनों को विधायक बनने का मौका मिला।

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महोबा जिले की चरखारी विधानसभा सीट लोधी मतदाता बाहुल्य मानी जाती है जो जालौन के नेताओं के लिए काफी उर्वर रही है। गंगाचरण राजपूत उनके पुत्र ब्रजभूषण राजपूत, कप्तान सिंह राजपूत व उनकी पत्नी उर्मिला देवी राजपूत का निर्वाचन होना इसका जीता जागता सबूत रहा है। कप्तान सिंह राजपूत कुछ समय से अस्वस्थ चल रहे हैं। एवं एक मामले में उन्हें सजा भी हो चुकी है। कमोवेश यही हाल कुंवर बादशाह सिंह का है। भाजपा से राजनीति शुरु करने वाले बादशाह सिंह बुंदेलखंड की राजनीति का दबंग चेहरा रहे हैं।

उन्होंने पृथक बुंदेलखंड राज्य निर्माण के वास्ते बुंदेलखंड इंसाफ सेना का गठन भी किया था। बादशाह सिंह भाजपा से बसपा में गए। एवं बसपा सरकार में मंत्री भी रहे। उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे। बादशाह सिंह भी अब राजनीति के बियाबान में हैं। महोबा में विधानसभा के टिकट पाये प्रत्याशियों में 64 बर्षीय राकेश गोस्वामी जो बहुजन समाज पार्टी  से 2007 में 2017 से विधायक रह चुके है बुजुर्ग नेता के तौर पर फिर से मैदान में हैं, कुल मिलाकर महोबा - हमीरपुर सीट से राजनीति के तमाम दिग्गजों का दौर अब खत्म सा हो गया है। 2022 की राजनीति का इशारा तो कुछ ऐसा ही है।

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