बुन्देलखण्ड का ये पहला जनपद होगा,  जहां गाय के गोबर से लकड़ी बनाने का प्रोजेक्ट शुरू होगा

गाय के गोबर का उपयोग रसोई गैस से लेकर देशी खाद और जैव उर्वरक बनाने में भी किया जा रहा है। गाय के गोबर से पेंट, कागज, बैग, ईंटें और यहां तक कि दंत मंजन यानी दातों को साफ करने वाला पाउडर ...

बुन्देलखण्ड का ये पहला जनपद होगा,  जहां गाय के  गोबर से लकड़ी बनाने का प्रोजेक्ट शुरू होगा

गाय के गोबर का उपयोग रसोई गैस से लेकर देशी खाद और जैव उर्वरक बनाने में भी किया जा रहा है। गाय के गोबर से पेंट, कागज, बैग, ईंटें और यहां तक कि दंत मंजन यानी दातों को साफ करने वाला पाउडर भी बनाया जा रहा है। वही बुन्देलखण्ड का उरई पहला जनपद होगा जहां जल्द ही गोबर से लकड़ी बनाने का प्रोजेक्ट शुरू होने वाला है। इसके लिए जिला प्रशासन और एनजीओ का करार अंतिम चरण में चल रहा है। टीम के सर्वे करने के बाद मार्च में इस प्रोजेक्ट को लेकर प्लानिंग होगी। अप्रैल से यह प्रोजेक्ट शुरू हो जाएगा। शुरुआत में गोशालाओं के गोबर से लकड़ी बनाने का काम शुरू होगा, उसके बाद पशु पालकों को भी इससे जोड़ा जाएगा। इस गोबर की लड़की का प्रयोग होने से पेड़ों का कटान कम होगा और पर्यावरण की दृष्टि से भी भी यह लाभकारी होगा।

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प्रशासन की ओर से एनजीओ को भेजी रिपोर्ट में बताया गया कि जिले में 413 गोशालाएं हैं। इनमें 40 हजार गोवंशों का संरक्षण है। इनसे प्रतिदिन 110 क्विंटल गोबर का उत्पादन होता है। सार्थक चौरीटेबल ट्रस्ट व ग्रीन रेवुलेशन फाउंडेशन स्टार्टप के निदेशक संजीव साहनी ने बताया कि वाराणसी, गोरखपुर व मथुरा के बाद कानपुर में यह प्रोजेक्ट शुरू होने जा रहा है। उसके बाद जालौन में इसे सार्थक किया जाएगा। इस तरह के प्रोजेक्ट के लिए तेज धूप और काफी जगह चाहिए होती है। सर्वे के दौरान ऐसा स्थान तलाशा जाएगा। साथ ही कोशिश की जाएगी कि दूरी ज्यादा न हो, जिससे ट्रांसपोटेशन का खर्चा न बढ़े। बाद में इससे ज्यादा से ज्यादा पशुपालकों को भी जोड़ा जा सकेगा। गाय के साथ ही भैंस आदि के गोबर भी लिए जा सकेंगे।

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प्रोजेक्ट विशेषज्ञ संजीव साहनी बताते हैं कि 10 किलो गोबर में 70 प्रतिशत पानी होता है। वैसे तो सुखाने के दौरान वह वाष्प बनकर उड़ जाता है, लेकिन इस प्रोजेक्ट में प्रयास रहेगा कि वह पानी भी प्रयोग में लाया जा सके। जैसे, पेड़-पौधों आदि में प्रयोग करने के लिए उसे स्टोर करने की विधि लाने का प्रयास रहेगा। जिले में गोशालाओं के बावजूद अभी भी छुट्टा गोवंश परेशानी का कारण बने हैं। गाय जब दूध देना बंद कर देती है तो उन्हें गोपालक छोड़ देते हैं। नर गोवंशों से भी कोई लाभ न होने की वजह से उन्हें अन्ना जानवरों में शामिल कर दिया जाता है। मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ. निर्मल कुमार ने बताया कि इस प्रोजेक्ट से लोग गोवंशों को पालने के लिए प्रेरित होंगे और उन्हें इससे लाभ भी पहुंचेगा।

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गोबर से लकड़ी बनाने के प्रोजेक्ट से गोवंशों को पालने के लिए पशु पालक प्रेरित होंगे। खासतौर पर उन्हें व घरेलू महिलाओं को समूह के रूप में रोजगार से भी जोड़ा जा सकेगा। स्वावलंबी होंगे और उन्हें दूध के साथ-साथ गोबर से भी आर्थिक लाभ होगा। मार्च में सर्वे के बाद अप्रैल में इस प्रोजेक्ट पर काम शुरू हो जाएगा।

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बताते चले कि पहले के समय में लोग गाय के गोबर का उपयोग घर और वातावरण को शुद्ध करने के लिए करते थे. गाय के गोबर को कपूर तथा अन्य प्रकार की लकड़ियों के साथ मिलाकर जलाया जाता था ताकि वातावरण शुद्ध हो सके। वहीं आज के समय में लोग अपने घरों में अगरबत्ती जलाकर घर को शुद्ध करते हैं। जिसके कारण अगरबत्ती की मांग हमेशा बनी रहती है।

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