केन बेतवा लिंक परियोजना के प्रभावितों ने किया ये बडा फैसला, सजा दी चिताएं

केन बेतवा लिंक परियोजना के डूब क्षेत्र में आए गांव के ग्रामीणों को मुआवजा नहीं मिला तो उन्होंने छतरपुर...

केन बेतवा लिंक परियोजना के प्रभावितों ने किया ये बडा फैसला, सजा दी चिताएं

छतरपुर
केन बेतवा लिंक परियोजना के डूब क्षेत्र में आए गांव के ग्रामीणों को मुआवजा नहीं मिला तो उन्होंने छतरपुर में कलेक्ट्रेट के सामने धरना दे दिया। यह धरना पिछले 7 दिन से जारी है जो अब चिता अनशन में बदल चुका है। जहां मौजूद ग्रामीणों ने लकड़ियों से चिंताएं बनाई और वही धरने पर बैठे है।

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ग्रामीणों का कहना है केन बेतवा लिंक परियोजना में उनके गांव डूब में आ गए उनको मुआवजे में न जमीन मिली न कहीं घर मिले और उनको अनाथो की तरह छोड़ दिया गया। अगर उनकी मांगें नहीं मानी गई तो उनके द्वारा बनाई गई चिताओं पर वह जल जाएंगे। इस धरना प्रदर्शन में करीब एक दर्जन गांव के ग्रामीण शामिल हुए हैं। लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं ग्रामीणों ने कलेक्ट्रेट में प्रदर्शन भी किया ग्रामीणों ने कहा के ग्राम सभाओं के माध्यम से जो काम किए गए हैं। वे पूरी तरह से कागजी हैं क्योंकि उनके गांव में अभी तक कभी ग्रामसभा लगाई नहीं जा सकी हैं। उनकी फरियाद सुनने के लिए कोई तैयार नहीं है इसलिए वह अब चिता आंदोलन में पर बैठ गए हैं।

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परियोजना प्रभावित गांव ढोड़न के 72 वर्षीय भूरा आदिवासी, 38 वर्षीय गौरीशंकर यादव, सुकवाहा की श्री सेन, पलकोहां के पूर्व जनपद सदस्य मुन्नीलाल खैरवार, खरयानी के चरन सौंर आदि का कहना है कि पेपर के माध्यम से पता चला कि  केन-बेतवा लिंक परियोजना का उद्घाटन होने वाला है। इस परियोजना में हमारा गांव, घर और जीवन भर की कमाई डूबने वाली है, सरकार ने हमसे बातचीत करना तो दूर हमें जानकारी देना तक उचित नहीं समझा। सामाजिक कार्यकर्ता अमित भटनागर ने बताया कि 22 मार्च 21 को प्रधानमंत्री की उपस्थिति में उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्रियों ने जिस सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं। उसमें परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहण एवं प्रभावित परिवारों के पुर्नवास और पुर्नस्थापना के कार्य समयबद्ध तथा पारदर्शी ढंग से करने की बात कही गई है।ग्रामीणों ने कहा- गांव डूबने की स्थिति में कहां बसाया जा रहा है जानकारी तक नहीं।

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उन्होंने सरकार की नीति पर सवाल उठाते हुए कहा कि पुनर्वास, पुनर्स्थापना की बात तो दूर अभी लोगों को यह तक पता नहीं है कि उनका गांव डूबने वाला है और उन्हें गांव डूबने की स्थिति में कहां बसाया जा रहा है या उन्हें मिलने वाला मुआवजा कितना है। अमित का कहना है कि आम लोग तो ठीक सरकार ने ग्रामीण जनप्रतिनिधियों तक को कोई जानकारी देना उचित नहीं समझा ।

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