डाक्टर लक्ष्मी से कैप्टन लक्ष्मी बन गईं, इस महिला ने वसूलों से कभी नहीं किया समझौता

चित्रकूट, जाति की सीमाओं को बचपन में ही लांघ चुकी कैप्टन लक्ष्मी सहगल अपने जीवन के अंतिम पड़ाव पर कभी अपने वसूलो से समझौता नहीं किया...

डाक्टर लक्ष्मी से कैप्टन लक्ष्मी बन गईं, इस महिला ने वसूलों से कभी नहीं किया समझौता

चित्रकूट, जाति की सीमाओं को बचपन में ही लांघ चुकी कैप्टन लक्ष्मी सहगल अपने जीवन के अंतिम पड़ाव पर कभी अपने वसूलो से समझौता नहीं किया। अंग्रेजो की सेना में डाक्टर बनना पसंद न कर सुभाष चन्द्र बोस की आजाद हिन्द फौज में सेवा करना मंजूर किया। नेता जी सुभाष चन्द्र बोस से 15 घंटे की इंटरव्यू में हुई मुलाकात में रानी झांसी रेजीमेंट की कमान डाक्टर लक्ष्मी के हाथों में दे दी गई और डाक्टर लक्ष्मी से कैप्टन लक्ष्मी बन गईं।

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 कैप्टन लक्ष्मी सहगल की स्मृति दिवस के अवसर पर चित्रकूट के लोढ़वारा स्थित कांशीराम कॉलोनी में जनवादी महिला समिति के सभा की अध्यक्षता करते हुए कामरेड पूनम ने कहा कि 24 अक्टूबर 1914 को तमिल ब्राह्मण परिवार में पैदा हुई लक्ष्मी जिनके पिता डा. यश स्वामी नाथन तथा सामाजिक कार्यकर्ता अम्मू स्वामी नाथन की संतान जाति पाति की सीमाओं को बचपन में ही लांघ कर कभी अपने वसूलों से समझौता नहीं किया। अंग्रेजों की फौज में डाक्टर बनने के बजाय आजाद हिन्द फौज की रानी झांसी रेजीमेंट में कैप्टन बनना पसंद किया और 92 वर्ष की उम्र में अंतिम पड़ाव पर कानपुर में गरीबों एवं मजलूमों की सेवा करते हुए 23 जुलाई 2012 को अंतिम साँसे ली। मुख्य अतिथि के रूप में उप्र किसान सभा के राज्य कार्यकारिणी सदस्य कामरेड रुद्र प्रसाद ने महिलाओं को सम्बोधित करते हुए कहा कि देश आजादी के बाद कैप्टन लक्ष्मी सहगल ने दोबारा डाक्टर लक्ष्मी सहगल बनकर मरीजों की सेवा जारी रखीं।

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1971 युद्ध के दौरान बार्डर के आसपास के लोगों की मदद की। वर्ष 1981 में महिलाओं की दिशा एवं दशा बदलने के उद्देश्य से अखिल भारतीय महिला समिति का गठन कर महिलाओं के लिए संघर्ष किया। 1998 में पद्म विभूषण से सम्मानित हुई। इसके इसके पूर्व कैप्टन लक्ष्मी सहगल के चित्र पर माल्यार्पण कर पुष्प अर्पित किए गए। नीलम ने गीत गाकर सभा की शुरुआत की। इस मौके पर कलावती, मीरा देवी, मीना, सलमा बेगम, रतिया देबी, रामरती, सावित्री, जगरनिया, समीना बेगम, राधिका ने अपने विचार रखें।

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