बांदा की बेटी वीरांगना दुर्गावती केे सामने सम्राट अकबर की सेना ने घुटने टेक दिये थे

जनपद में कालिंजर का दुर्ग अपने उस गौरवशाली अतीत का साक्षी आज भी है, जिसने कभी दुर्नाम आक्रांताओं के सामने घुटने नही टेके..

बांदा की बेटी वीरांगना दुर्गावती केे सामने सम्राट अकबर की सेना ने घुटने टेक दिये थे
वीरांगना दुर्गावती

  • वीरांगना रानी दुर्गावती बलिदान दिवस

जनपद में कालिंजर का दुर्ग अपने उस गौरवशाली अतीत का साक्षी आज भी है, जिसने कभी दुर्नाम आक्रांताओं के सामने घुटने नही टेके। महाराजाओं ने तो अपने शौर्य का प्रदर्शन कर कई बार आक्रमणकारियों को खदेड़ा, लेकिन यहां की वीरांगनाएं भी अपना शौर्य दिखाने में कभी पीछे नहीं रहीं। शूरवीर पिता कीर्ति सिंह की पुत्री दुर्गावती ने अपने शौर्य का वह कमाल दिखाया जिसकी चर्चा सदियां बीत जाने के बाद आज भी होती है। 

कालिंजर दुर्ग हथियाने को तमाम राजा व मुगल शासक हमला करते रहे। कई बार युद्ध हुए जिसमें दुर्ग की रक्षा करते हुए शासक रहे योद्धाओं ने अपने प्राण न्योछावर किया। लेकिन कोई भी आक्रांता यहां पर कब्जा नहीं कर सका। यहां के एक शासक थे राजा कीर्ति सिंह, कीर्ति सिंह की इकलौती पुत्री थी दुर्गावती। 450 साल पहले दुर्गावती ने मुगलिया सम्राट अकबर का मान मर्दन किया था।

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  • कीर्ति सिंह की इकलौती पुत्री थी दुर्गावती

कीर्ति सिंह की एक मात्र संतान होने के कारण ही उसे राजकुमारों के समान शस्त्र व शास्त्र की शिक्षा दी गई थी। 13-14 साल की उम्र में वह शेर, तेन्दुआ जैसे भयंकर वन जन्तुओं को पल भर में ही ढेर कर देती थी। जब कालिंजर दुर्ग में दुर्गावती का जन्म हुआ तो ज्योतिषियों ने उनके हाथ की रेखाएं देखकर बताया कि यह विलक्षण कन्या है।

कालिंजर का दुर्ग

बचपन से किशोरावस्था तक आते-आते दुर्गावती अपने पिता के साथ राज दरबार के सभा संवाद में सम्मिलित होने लगी। शस्त्र संचालन का प्रशिक्षण स्वयं राजा ने किया। दुर्गावती द्वारा बड़े-बड़े जानवरों का शिकार किया तो दुर्गावती के साहस और वीरता की ख्याति दूर-दूर तक फैल गई। नरभक्षी जानवरों का शिकार तो वह बडे़ शौक से करती थी। युवावस्था आने पर दुर्गावती अपने पिता के साथ युद्ध मैदान में जाने लगी और युद्ध कला एवं सैन्य संचालन सीखने लगी।

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  • दुर्गावती से विवाह विवाह के लिए कालिंजर पर हमला

इधर, गोंडवाना (जबलपुर) में राजा संग्राम सिंह का शासन था। उनके वीर और योग्य पुत्र राजकुमार दलपतिशाह थे। उसके पास राजकुमारी दुर्गावती के रूप और वीरता की चर्चा पहुंची तो उन्होंने उन्हें अपनी पत्नी बनाने के लिए पुरोहितों के माध्यम से विवाह का प्रस्ताव भेजा। कीर्ति सिंह ने दुर्गावती विवाह का प्रस्ताव ठुकरा दिया।

कीर्ति सिंह द्वारा प्रस्ताव ठुकराने पर दलपति शाह को बहुत बुरा लगा और उसके एक शक्तिशाली सेना लेकर कालिंजर पर हमला कर दिया। युद्ध में सैकड़ांे वीर मारे गए। दलपित ने कालिंजर को जीत लिया पर महराज कीर्ति सिंह से कोई दुव्र्यवहार नहीं किया। उनकी सज्जनता देखकर कीर्ति सिंह ने राजकुमारी दुर्गावती का विवाह दलपति के साथ कर दिया।

विवाह के पश्चात दुर्गावती रानी दुर्गावती बन गई और उसके एक पुत्र को जन्म दिया। दो साल बाद ही दलपतिशाह बीमार पड़े और उनका असमय निधन हो गया। पति के मरने के बाद दुर्गावती ने अपने नाबालिग पुत्र वीर नारायण को गद्दी पर बैठाया और स्वयं संरक्षिका के रूप में राज्य व्यवस्था करने लगी।

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बांदा के कवि केशन सिंह दिखित विमल जिन्होने ‘क्षत्राणी दुर्गावती’ महाकाव्य लिखा बताते हैं कि।दुर्गावती के संचालन से राज्य की समृद्धि बढ़ती गई और चारो तरफ यश फैलने लगा। उस समय दिल्ली के तख्त पर अकबर विराजमान था। उसने मालवा और बंगाल को अपने अधिकार में ले लिया गोंडवाना (मध्यप्रदेश) तथा दक्षिण की तरफ बढ़ रहा था। रानी दुर्गावती ने भी उसके इरादो का अनुमान कर लिया था, पर इतने बड़े सम्राट का सामना करने की शक्ति गढ़ मंडला में थी नहीं, फिर भी दुर्गावती अपनी शक्ति बढ़ाती रही।

अकबर ने कुड़ा (प्रयाग) के सूबेदार आसफ खां को गोंडवाना पर नजर रखने का आदेश दिया था उसने दुर्गावती के कुछ लालची और चरित्रवान सरदारों को धन और पद का लोभ देकर अपने पक्ष में कर लिया लेकिन रानी का वफादार मंत्री आधार सिंह की स्वामी भक्ति के आगे उसकी हर चाल नाकाम होती रही। अंततः अकबर ने पत्र भेजकर मंत्री आधार सिंह को दिल्ली बुलवाया। इसमें यह चाल थी कि अगर रानी आधार को नहीं भेेजेगी तो इसी बहाने गोंडवाना में आक्रमण किया जायेगा।

लेकिन आधार सिंह भी उनकी चाल समक्ष गया फिर भी वह रानी दुर्गावती से अनुमति लेकर दिल्ली गया, जहां अकबर ने उसे गोंडवाना का शासक बनाने का लालच दिया। आधार सिंह ने अकबर के प्रस्ताव को ठुकरा दिया। आधार सिंह को जेल में बंदकर आसफ खां को गोंडवाना में आक्रमण करने का आदेश दिया।

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  • नंगी तलवार लेकर दुश्मन पर टूट पड़ी

फिर भी दुर्गावती ने हिम्मत नहीं हारी आक्रमण होने पर वह अपने बेटे नारायण के साथ घोड़े में सवार होकर हाथों में नंगी तलवार लेकर दुश्मन पर टूट पड़ी। बादशाही सेना में भगदड़ मच गई। इस पराजय से आसफ खां दुखी हुआ उसने फिर से नई चाल चली और बादशाह की तरफ से एक दूत सफेद झण्डा लेकर संधि का संदेश भेेजा, लेकिन रानी ने संधि का प्रस्ताव ठुकरा दिया। आसफ खां ने दूसरी बार आक्रमण किया। रानी और उसके सैनिकांे ने एक बार फिर अकबर की सेना को परास्त कर दिया।

द्वितीय आक्रमण में विजय पाकर गढ़मंडला की सेना उल्लास में आकर रासरंग मनाने लगी और अनुशासन ढीला पड़ गया। इसी बीच दो बार हार से तिलमिला रहे आसफ खां ने तीसरी बार हमला किया। युद्ध में उसके पुत्र वीर नारायण ने सैकड़ों सैनिकों को मारकर वीरगति प्राप्त की। यह देखकर दुर्गावती ने अपने चुने हुए 300 सवारों के साथ मुगल सेना पर टूट पड़ी।

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उसने सैकड़ों सैनिकों को यमलोक पहुंचा दिया। अचानक एक तीर आकर दुर्गावती की आंख में लगा। इससे पहले कि वह संभल पाती एक तीर और लगा जिससे वह समझ गई कि अब उसका अंत समय आ गया। उसने अपने कटार से अपने छाती में घुसेड़ ली ताकि उसे दुश्मन जीवित न पा सके।

दुर्गावती ने जिस प्रकार मातृभूमि की रक्षा के लिए विदेशी आक्रमणकारियों से युद्ध करके वीर गति पाई। अकबर जैसे प्रसिद्ध सम्राट की शक्तिशाली फौज को दो बार पराजित कर दुर्गावती ने अप्रतिम जौहर दिखाया। संसार के पुराने इतिहास में किसी भी देश की महिला ने युद्ध में ऐसी वीरता और कौशल दिखाया हो इसका कोई प्रसिद्ध उदाहरण नही है।

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