हमीरपुर : मराठा कालीन दुर्गा मंदिर के जल से चेचक बीमारी होती छू-मंतर 

हमीरपुर शहर के बीच मराठा कालीन दुर्गा मंदिर का स्वरूप अब पूरी तरह से बदल दिया गया है...

हमीरपुर : मराठा कालीन दुर्गा मंदिर के जल से चेचक बीमारी होती छू-मंतर 

  • पांच सौ साल पुराने देवी के मंदिर की पूजा के बाद ही बहु ससुराल में करती थी प्रवेश

एक मठ में विराजमान दुर्गा मां की प्रतिमा में इतनी शक्ति थी कि यहां दर्शन करने वाले कभी निराश नहीं हुये। देवी मां को जल अर्पित करने के बाद मात्र जल पिलाने और लगाने से ही चेचक जैसी गंभीर बीमारी भी छू-मंतर हो जाती है। मौजूदा में इस मंदिर का न सिर्फ कायाकल्प हो चुका है बल्कि एक बड़ा गेट लगाकर मंदिर को अंदर कर दिया गया है। इतना ही नहीं मंदिर में दिन भर बड़ा पालतू कुत्ता रहता है जिसके डर से कोई भी श्रद्धालु पूजा करने मंदिर नहीं जा पाता है। 

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हमीरपुर नगर के पतालेश्वर मंदिर के पास मिट्टी के बड़े टीले में दुर्गा मंदिर स्थित है। शुरू में देवी मां की पूजा करने के लिये महिलायें डंडा के सहारे पगडंडी से होते हुये मंदिर तक जाती थीं। मंदिर भी काफी ऊंचाई में था लेकिन अब जीर्णाेद्धार हो जाने से श्रद्धालु आसानी से मंदिर तक पहुंचते हैं। मंदिर के जीर्णाेद्धार में पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष प्रतिनिधि जितेन्द्र मिश्रा ने लाखों की धनराशि खर्च की है मगर मराठा कालीन की इस धार्मिक धरोहर का अस्तित्व पूरी तरह से बदल चुका है।

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किसी जमाने में इस मंदिर के आसपास घना जंगल था। रात के समय कोई भी मंदिर के आसपास से निकलने में घबराता था मगर अब मंदिर के चारो ओर आलीशान मकान खड़े हो गये हैं। यमुना नदी के तट से करीब सौ मीटर की दूरी में स्थित दुर्गा माता का मंदिर पूरे क्षेत्र में प्रसिद्ध है क्योंकि मां दुर्गा की प्रतिमा मराठा कालीन है। मिश्राना मुहाल निवासी सतीश तिवारी व रिटायर्ड कलेक्ट्रेट कर्मी सहदेव ने बताया कि दुर्गा मां की मराठाकालीन प्रतिमा एक मठ में विराजमान थी तब इनकी पूजा और अनुष्ठान से तमाम लोगों की मन्नतें पूरी हुयी थी।

 करीब चालीस साल पहले चेचक बीमारी का प्रकोप बढ़ने पर देवी मां को जल अर्पित करने के बाद ये जल कालका सैनी लोगों को घर-घर जाकर बीमार लोगों को पिलाता था। जिससे लोग दो तीन दिन में इस बीमारी से ठीक हो जाते थे।

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  • मंदिर परिसर में चौबीस घंटे सपा नेता का रहता है कुत्ता, डर के मारे नहीं आते श्रद्धालु

बुजुर्ग महिलाओं के मुताबिक इस मंदिर में चेचक बीमारी ठीक होने के बाद मंदिर में पान बतासा देवी मां को अर्पित कर कन्याओं को प्रसाद खिलाये जाता है। इससे मां प्रसन्न होती है। कई लोगों ने बताया कि नवरात्रि पर्व में अब शहर के कई इलाकों के श्रद्धालु इस मंदिर में पूजा अर्चना करने नहीं जा पाते है क्योंकि मंदिर के बाहर एक बड़ा गेट बनवाकर इस स्थान को अंदर कर दिया गया है। मंदिर परिसर में एक बड़ा पालतू कुत्ता भी हर समय रहता है जो आने वालों को देखकर भौंकता है। डर के मारे आसपास के लोग भी वहां जाने से घबराते है। हालांकि मंदिर और परिसर में लाखों रुपये खर्च कर इसे भव्य बनाया गया है मगर मंदिर सन्नाटे में ही रहता है। 

मराठाकाल में निर्मित हुआ था दुर्गा मंदिर

हमीरपुर शहर के मिश्राना मुहाल निवासी सहदेव व रामश्री (70) ने बताया कि मराठाकाल के समय में ये मंदिर बना था। जमीन से करीब पैंतीस फीट की ऊंचाई में मिट्टी के टीले में स्थित ये मंदिर बड़ा ही रमणीक दिखता था लेकिन अब मंदिर के आसपास कई मंजिला मकान बन जाने से ये पवित्र स्थान दब गया है। मिट्टी के टाले में भी तमाम घर बन चुके है। जबकि शुरू में सिर्फ दुर्गा मंदिर ही बना था। 

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मां दुर्गा देवी हर संकट से रखती हैं सुरक्षित

यहां के बुजुर्ग लोगों ने बताया कि ऊंचाई में स्थित दुर्गा देवी मां का मंदिर हर विपदाओं से सभी को सुरक्षित रखती है। वर्ष 1978 व 1983 में यमुना और बेतवा नदियों के उफनाने से शहर के अंदर पानी भर गया था लेकिन माता रानी के कारण कोई भी जनहानि नहीं हुयी थी। मंदिर के आसपास के इलाके भी जलमग्न हो गये थे जबकि मंदिर और बाढ़ प्रभावित स्थानों के लोग पूरी तरह से सुरक्षित रहे। 

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दुर्गा देवी के मठ में जलता था अखंड दीया 

एक छोटे से मठ के अंदर विराजमान देवी मां की प्रतिमा के सामने अखंड दीया जलता था। पटकाना मुहाल निवासी कालका सैनी सुबह और शाम मंदिर में फूल अर्पित कर दीया जलाते थे। बताते है कि उस जमाने में हमीरपुर शहर में बिजली की व्यवस्था नहीं थी। नगर में पालिका कुछ इलाकों और चौराहों पर लैंप जलवाती थी। मंदिर में प्रसाद के तौर पर सिर्फ देवी मां को बतासा अर्पित किया जाता है।

हिन्दुस्थान समाचार

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