कालिंजर महोत्सव से पर्यटन की संभावनाओं को मिलेगी नई दिशा

बुंदेलखंड के जनपद बांदा में स्थित भारत सरकार द्वारा संरक्षित ऐतिहासिक कालिंजर दुर्ग विश्व कला धरोहर...

कालिंजर महोत्सव से पर्यटन की संभावनाओं को मिलेगी नई दिशा

बुंदेलखंड के जनपद बांदा में स्थित भारत सरकार द्वारा संरक्षित ऐतिहासिक कालिंजर दुर्ग विश्व कला धरोहर की अनुपम कृति है। इसके बाद भी शासन से उपेक्षित इस दुर्ग की उपेक्षा से अभी तक इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वह पहचान नहीं मिली, जिसका वह हकदार है। इसके लिए प्रशासनिक स्तर पर पूरी कोशिश की गई। तत्कालीन जिला अधिकारियों ने भी हर संभव प्रयास किया। इनमें डॉ हीरालाल का नाम भी लिया जा सकता है। जिन्होंने कालिंजर महोत्सव को भव्यता के साथ मनाया था और अब डीएम दीपा रंजन का प्रयास भी रंग लाया जिनके अथक प्रयासों का परिणाम है कि आज कालिंजर महोत्सव को राजकीय दर्जा मिल गया।

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कालिंजर दुर्ग को अंतर्राष्ट्रीय पर्यटक स्थल के रूप में संवारने के उद्देश्य से तत्कालीन जिला अधिकारी हीरालाल ने सार्थक प्रयास किया। उन्होंने इसके विकास के लिए कालिंजर फोर्ट विकास समिति का गठन किया। उनके प्रयास से ही भारत सरकार द्वारा कालिंजर विकास के लिए 8 करोड 7 लाख रुपए स्वीकृत हुए। जिस पर निर्माण कार्य चल रहा है।

dm deepa ranjan banda

इसके बाद वर्ष 2019 में उन्होंने कालिंजर महोत्सव का आयोजन किया। इसी कार्यक्रम में अरहर सम्मेलन भी हुआ।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा कालिंजर महोत्सव को राजकीय दर्जा दिए जाने पर खुशी जाहिर करते हुए पूर्व जिलाधिकारी हीरालाल ने जनपद वासियों और प्रशासनिक अधिकारियों को बधाई दी और कहा कि ‘इस दुर्ग को अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलाने के लिए मैंने जो मुहिम शुरू की थी अब उसके परिणाम नजर आने लगे। निश्चित ही राजकीय दर्जा मिलने के बाद कालिंजर महोत्सव को भव्य रुप मिलेगा साथ ही दुर्ग के विकास को और गति मिलेगी। इस मुहिम को आगे बढ़ाने में क्षेत्रीय विधायक ओम मणि वर्मा और जिला अधिकारी दीपा रंजन का प्रयास भुलाया नहीं जा सकता है।’ 

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नाटक रूपक षटकम में कालिंजर महोत्सव का उल्लेख

बताते चलें कि अजेय दुर्ग कालिंजर में हर साल कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर लगने वाला कतकी मेला अपने अंदर 1000 वर्षों का इतिहास समेटे है। इस दुर्ग में चंदेल शासक परिमर्दिदेव ने (1165 -1202) के समय मेले की शुरुआत की थी। तबसे यहां मेला लग रहा है। कालिंजर पुरातन काल से ही धार्मिक गतिविधियों का प्रमुख केंद्र था। पौराणिक काल से ही यहां मेलों एवं तीर्थाटन की परंपरा थी। सर्वप्रथम राजा परिमर्दिदेव के मंत्री नाटककार वत्सराज द्वारा रचित नाटक रूपक षटकम में कालिंजर महोत्सव का उल्लेख मिलता है। उनके शासनकाल में प्रतिवर्ष वत्सराज दो नाटकों का मंचन कालिंजर महोत्सव के अवसर पर किया जाता था। मदनवर्मन के समय पद्मावती नामक नर्तकी की जानकारी कालिंजर के इतिहास में मिलती है।

उसका नृत्य उस समय कालिंजर महोत्सव का प्रमुख आकर्षक था। एक हजार साल पुरानी यह परंपरा आज भी कतकी मेले के रूप में विद्यमान है। जिसमें विभिन्न अंचलों के लाखों लोग कालिंजर आकर विभिन्न सरोवरों में स्नान कर भगवान नीलकंठेश्वर के दर्शन कर पुण्य लाभ अर्जित करते हैं।

महोत्सव परंपरा को 1988 में तत्कालीन डीएम ने शुरू कराया

कालिंजर महोत्सव की प्राचीन परंपरा को जीवित बनाए रखने के लिए सर्वप्रथम 1988 में तत्कालीन जिलाधिकारी हरगोविंद विश्नोई के प्रयासों से महोत्सव परंपरा चालू हुई।

सन 1990 में जिलाधिकारी राकेश गर्ग महोत्सव का आयोजन करवाया। वर्ष 1992 में जिलाधिकारी डा. शंकरदत्त ओझा के विशेष प्रयासों से विश्व धरोहर सप्ताह का आयोजन हुआ। जिसमें देश के ख्यातिप्राप्त कलाकारों ने सात दिनों तक अपने कार्यक्रम प्रस्तुत किए। सन 2000 में जिलाधिकारी डी एन लाल एवं मुख्य विकास अधिकारी कोमल राम के संयुक्त प्रयासों से आठ वर्ष बाद कालिंजर महोत्सव मनाया गया।

सन 2001 में जिलाधिकारी नीतीश्वर कुमार ने कालिंजर महोत्सव का आयोजन करवाया। इसमें रवींद्र जैन की संगीत संध्या और भोजपुरी फिल्म स्टार मनोज तिवारी कार्यक्रम अद्वितीय था। वर्ष 2019 में डीएम हीरालाल ने मेले का आयोजन कराया था। 2 वर्ष कोरोना काल के कारण मेले का आयोजन नहीं हुआ। 2 वर्ष बाद एक बार फिर पूर्व डीएम अनुराग पटेल के कार्यकाल में हुआ और वर्ष 2023 में इसका श्रेय डीएम दीपा रंजन को जाता है।

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