कानपुर बुन्देलखण्ड की 10 लोकसभा सीटों में नौ महिलाएं ही पहुंच सकी संसद

कानपुर बुन्देलखण्ड को वीरांगनाओं की धरती कहा जाता है, लेकिन संसद में उनका प्रतिनिधित्व अब तक नाममात्र का...

कानपुर बुन्देलखण्ड की 10 लोकसभा सीटों में नौ महिलाएं ही पहुंच सकी संसद

तीन लोकसभा सीटों में तो अब तक महिलाओं ने कभी नहीं किया प्रतिनिधित्व

कानपुर। कानपुर बुन्देलखण्ड को वीरांगनाओं की धरती कहा जाता है, लेकिन संसद में उनका प्रतिनिधित्व अब तक नाममात्र का ही रहा। इस क्षेत्र की 10 लोकसभा सीटों में अब तक नौ महिलाएं ही संसद पहुंच सकी। तीन ऐसी लोकसभा सीटें हैं, जहां से आज तक कोई भी महिला लोकसभा का प्रतिनिधित्व नहीं किया।

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देश में अठारहवीं लोकसभा चुनाव के लिए डुगडुगी बजने ही वाली है और राजनीतिक पार्टियां उम्मीदवारों की घोषणा भी कर रही हैं। लेकिन कानपुर बुन्देलखण्ड की 10 सीटों में अब तक सिर्फ भाजपा ने ही फतेहपुर से वर्तमान सांसद साध्वी निरंजन ज्योति को टिकट दिया है। तो वहीं जिस प्रकार का राजनीतिक माहौल दिखाई दे रहा है उससे अगर यह कहा जाये कि अब कानपुर बुंदेलखण्ड की सीटों में महिला उम्मीदवार नहीं होंगी तो अतिशयोक्ति भी नहीं होगी। ऐसे में एक बार फिर कानपुर बुंदेलखण्ड की लोकसभा सीटों में पुरुषों का दबदबा कायम रहने की संभावना है और नारी शक्ति वंदन की बातें हवा हवाई साबित हो सकती हैं।

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एक नजर में 10 लोकसभा सीटों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व

कानपुर बुन्देलखण्ड में 10 लोकसभा सीटें हैं, जिनमें बुन्देलखण्ड में चार और कानपुर मण्डल में पांच और एक फतेहपुर सीट हैं। बुन्देलखण्ड की सीटों में बांदा लोकसभा सीट पर एक बार कांग्रेस से 1962 में सावित्री निगम संसद पहुंची। पड़ोसी लोकसभा सीट हमीरपुर महोबा में अब तक एक भी महिला सांसद नहीं बनी। वहीं, रानी लक्ष्मीबाई की धरती झांसी में दो महिलाएं संसद पहुंची, लेकिन उनका प्रतिनिधित्व पांच बार रहा। इस सीट से सुशीला नैय्यर 1957, 62, 67 में कांग्रेस से जीती और 1977 में जनता पार्टी से जीत दर्ज की। अर्शे बाद 2014 में मोदी लहर में मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने संसद में झांसी का प्रतिनिधित्व किया। बुन्देलखण्ड की चौथी लोकसभा सीट जालौन में एक बार भी महिला सांसद नहीं बनी।

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कानपुर मण्डल की पांच लोकसभा सीटों की बात करें तो कानपुर नगर सीट से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) की उम्मीदवार सुभाषिनी अली 1989 में चुनाव जीती, लेकिन उनका कार्यकाल दो ही साल का रहा। वहीं कानपुर की दूसरी सीट अकबरपुर (पूर्व में बिल्हौर लोकसभा सीट) से सुशीला रोहतगी कांग्रेस के टिकट पर 1967 और 1971 में सांसद चुनी गईं। कन्नौज लोकसभा सीट से शीला दीक्षित 1984 में कांग्रेस पार्टी से जीत हासिल की।

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इसके बाद 2012 के उप चुनाव में तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव निर्विरोध सांसद बनी। अगले आम चुनाव 2014 में भी उन्होंने जीत दर्ज की। फर्रुखाबाद लोकसभा सीट की बात करें तो यहां एक बार भी महिला सांसद नहीं बन सकी। इटावा लोकसभा सीट में एक बार 1998 में भाजपा की सुखदा मिश्रा दिल्ली पहुंचने में सफल रहीं। कानपुर की पड़ोसी लोकसभा सीट फतेहपुर में साध्वी निरंजन ज्योति ने 2014 और 19 में जीत दर्ज की।

हिन्दुस्थान समाचार

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