चित्रकूट की आतिशबाजी में पहाड़ तोड़ने वाले डायनामाइट का इस्तेमाल हुआ?

चित्रकूट में उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग द्वारा आयोजित बुंदेलखंड गौरव महोत्सव में आतिशबाजी के लिए कहीं पहाड़ तोड़ने वाले डायनामाइट का इस्तेमाल तो नहीं किया गया। गुरुवार ...

चित्रकूट की आतिशबाजी में पहाड़ तोड़ने वाले डायनामाइट का इस्तेमाल हुआ?

चित्रकूट में उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग द्वारा आयोजित बुंदेलखंड गौरव महोत्सव में आतिशबाजी के लिए कहीं पहाड़ तोड़ने वाले डायनामाइट का इस्तेमाल तो नहीं किया गया। गुरुवार को आतिशबाजी की जांच करने पहुंची तीन टीमों का फोकस इसी बिंदु पर रहा। जांच कर रही टीमों का मानना है कि आतिशबाजी में इतना भयानक बारूद नहीं होता, जिसके विस्फोट से कोई लाश उड़कर 40 फुट ऊंचाई पर जाकर गिरे। तो क्या वास्तव में आतिशबाजी में डायनामाइट का इस्तेमाल किया गया था। अभी इस सवाल का जवाब आना बाकी है, लेकिन जांच टीमों की जांच इसी बिंदु के आसपास घूम रही है। 

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डायनामाइट का प्रयोग निर्माण, खनन, उत्खनन और विध्वंस उद्योगों में किया जाता है। इसका प्रयोग पटाखे में नहीं किया जाता है। बुंदेलखंड गौरव महोत्सव के आतिशबाजी स्थल चित्रकूट इंटर कॉलेज में बुधवार को धड़ाम धड़ाम होते ही चीख पुकार मच गई, धमाकों की गूंज लगभग एक  किलोमीटर दूर तक सुनाई पड़ी। विस्फोट की आवाज इतनी भयानक थी कि एक छात्र इसकी चपेट में आकर 40 फीट ऊंची छत पर जा गिरा था। जिसके चिथड़े उड़ गए थे। विस्फोट की भयावह स्थिति को देखते हुए इस बात के कयास लगाए जा रहे हैं कि आतिशबाजी में डायनामाइट का प्रयोग किया गया था। जिसका प्रयोग इस इलाके में पहाड़ तोड़ने में किया जाता है।

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 इस बारे में भरतकूप के पहाड़ों पर पत्थर खनन का काम कराने वाले राजकुमार भी मानते हैं कि यह धमाका ठीक उसी प्रकार था जैसा पहाड़ों पर पत्थर तोड़ने के दौरान होता है। पत्थर तोड़ने में डायनामाइट का प्रयोग किया जाता है पूरी संभावना है कि पटाखों में डायनामाइट का प्रयोग किया गया था। जिसका प्रयोग सार्वजनिक स्थानों पर करना गैरकानूनी है।गुरुवार को तीन टीमों की जांच का केंद्र भी यही रहा कि विस्फोट कितना बड़ा था। क्या यह सब नियमों के खिलाफ था। डायनामाइट का प्रयोग पहाड़ों पर खनन करने वाले ब्लास्टिंग के लिए कराते हैं। इसे बैटरी से जोड़ा जाता है। बारूद के साथ शक्तिशाली सेल लगे होते हैं। इसके बाद रिमोट से धमाका कर चट्टानें तोड़ी जाती हैं। इसके लिए लाइसेंस लेने होता है।

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पर्यावरणविद गुंजन मिश्रा भी मानते हैं कि सीआईसी में जो धमाका हुआ उसकी आवाज लगभग 140 डेसीवल रही होगी, जबकि नियमों के अनुसार दिन में पटाखों की आवाज 70 से 80 डेसीबल से अधिक नहीं होनी चाहिए। गुरुवार को आई फोरेंसिक, बम निरोधक दस्ता व विस्फोटक सामग्री की जांच वाली टीम के सदस्यों ने मौके से मिले ढाई फीट के बमों को निष्क्रिय करने के बाद उसके अंदर की बारूद की जांच की है।

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वही महोत्सव के लिए आतिशबाजी का ठेका लेने वाली डोंप कंपनी के कर्मचारियों ने बताया कि आतिशबाजी का नजारा आसमान पर दिखता है। जमीन पर पहले से स्टैंड पर आतिशबाजी फिटकर बिजली और बैटरी से जोड़कर रिमोट के सहारे चलाया जाता है। आतिशबाजी के दौरान कोई नजदीक नहीं जाता। 15- 20 मीटर दूर से रिमोट से इसका संचालन होता है। 

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