अर्हम योग प्रणेता मुनि श्री प्रणम्य सागर बोले-‘अगर भक्ति है श्रद्धा है तो धैर्य है धैर्य है तो संयम हैं’

श्री 108 मज्जिनेन्द्र बेदी प्रतिष्ठा एवं कलशा रोहण महामहोत्सव के दूसरे  दिन सुबह भगवान का अभिषेक हुआ...

अर्हम योग प्रणेता मुनि श्री प्रणम्य सागर बोले-‘अगर भक्ति है श्रद्धा है तो धैर्य है धैर्य है तो संयम हैं’

बांदा,
श्री 108 मज्जिनेन्द्र बेदी प्रतिष्ठा एवं कलशा रोहण महामहोत्सव के दूसरे दिन सुबह भगवान का अभिषेक हुआ फिर याग मंडल पूजा विधान हुआ उसके उपरांत झंडा चौराहा स्थित कार्यक्रम स्थल में मुनि श्री 108 प्रणम्य सागर महाराज जी के प्रवचन हुए प्रवचन में उन्होंने जैन रामायण के बारे में बताया मुनि श्री ने कहा कि जब दसरथ सन्यास लेकर बन में जाना चाहते थे तो रानी कैकई को लगा कि दशरथ के संन्यास लेने पर कहीं पुत्र भरत भी संन्यासी न हो जाए और घर छोड़कर चला जाए।

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तो ऐसे में मैं कैसे रोके, भरत के बिना नही रह पाऊंगी इसलिए कैकई ने दशरथ से वरदान मांगा तो दशरथ ने कहा मांग लो बरदान तब  कैकई ने पुत्र प्रेम में कहा कि भरत को राज्य का राजा बना दो। कैकई ने सोचा कि जब भरत राजा बन जाएंगे तो  राज्य संभालने में ही लग जाएंगे  बन में नही जायेगे और मेरे साथ रहेगे।

 इधर राम जानते थे कि मेरे होते भरत राज्य नही करेंगे। ऐसे में भाई भरत अच्छे से राज्य करें उसके मन में किसी भी प्रकार के विकल्प न आए इसलिए राम ने अपनी स्वेच्छा से राज्य का त्याग किया। स्वाभिमान की रक्षा हेतु कुल परंपरा को बचाए रखने हेतु भगवान राम ने तुम त्याग धर्म को अपनाया और उत्तम त्याग धर्म का पालन करते हुए राज्य को छोड़कर वन में चले गए। यह उत्तम त्याग धर्म का उदाहरण है और बाद में भरत के आग्रह पर वापस राज्य में आए और बाद में  मांगी तुंगी सिद्ध क्षेत्र से जैन दीक्षा लेकर मोक्ष चले गए। 

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मुनि श्री प्रणम्य सागर महाराज जी ने कहा कि जो वैभव भोग हमें मिल रहे हैं वह हमारे पुण्य से मिलते हैं अगर हम उन भोगों को त्यागते हैं तो यह अतिशय पुण्य अर्जित करना होता है। उन्होंने कहा कि भोग सामग्री मिलना पुण्य के उदय से है ,शरीर निरोग रहना ,धन संपदा ,गाड़ी ,संपत्ति यह सभी पूर्व अर्जित किए गए पुण्य के कारण ही हमको मिला है। इसलिए हमें सदा अच्छे कर्म करना चाहिए सेवा भाव, लोगों के प्रति प्रेम भाव रखना चाहिए। क्रोध, लोभ,राग द्वेष से दूर रहना चाहिए अर्हम योग प्रणेता मुनि श्री प्रणम्य सागर महाराज ने अरहम योग के बारे में बताया  कहा कि योग के द्वारा ही हम बीमारियों पर अपने मन पर विजय पा सकते हैं।

मुनि श्री प्रणम्य सागर महाराज जी ने कहा कि त्याग में धैर्य होता है और धैर्य से आत्मोन्नति होती है उन्होंने शबरी का उदाहरण दिया की शबरी ने धैर्य रखा की एक दिन राम आएंगे मैं उनके दर्शन करुंगी। एक दिन वह आएगा जब मैं मिलूंगी बरसों उन्होंने भगवान राम का इंतजार किया और एक दिन आया जब राम स्वयं उनके घर पहुंचे अर्थात अगर भक्ति है श्रद्धा है तो धैर्य है धैर्य है तो संयम हैं और संयम के द्वारा ही हम भगवान को पा सकते है।  बेदी प्रतिष्ठा के कार्यक्रम में  105 क्षुल्लक श्री सविनय सागर महाराज, क्षुल्लक 105 अनुनय सागर जी महाराज, क्षुल्लक105 श्री समन्वय सागर जी महाराज उपस्थित रहे।

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इसके उपरांत पूजा बिधान हुआ इंद्र इंद्राणी, कुबेर, सौधर्म इंद्र बनकर  भगवान के गुणों की महिमा पढ़ी ओर पूजा बिधान किया। विधान में विधान के समापन के बाद इंद्राणी इंद्राणी, कुबेर, आदि ने  कार्यक्रम स्थल झंडा चौराहा में स्थित पंडाल में कलश शुद्धि की।  जबलपुर से आये प्रतिष्ठाचार्य पंडित शुभम जैन द्वारा कलश शुध्दि का कार्यक्रम संपन्न कराया गया। शाम को गुरु भक्ति, मंगल आरती एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम हुए, सौधर्म इंद्र इंद्राणी अंकित नेहा जैन, कुवेर इंद्र मनोज मंजरी जैन, यज्ञ नायक सनत कुमार विनोद जैन, श्राविका श्रेस्ति नयन आकांछा  दिलीप जैन प्रकाश जैन, आदि सैकड़ो की संख्या में जैन अनुयायी रहे।

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